नई दिल्ली। जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई (BR Gavai ) देश के नए मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं। उन्होंने आज बुधवार को देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली। राष्ट्रपति भवन में एक संक्षिप्त समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस गवई को पद और गोपनियता की शपथ दिलाई। उन्होंने हिंदी में शपथ ली।
उन्होंने जस्टिस संजीव खन्ना की जगह ली है जो कल मंगलवार को रिटायर हो गए। उनके शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, स्पीकर ओम बिरला, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह के अलावा पूर्व सीजेआई और सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट के न्यायाधीश भी शामिल हुए। पद की शपथ लेने के बाद जस्टिस गवई (BR Gavai ) ने अपनी मां के पैर छुए। वह 6 महीने तक पद पर रहेंगे।
इससे पहले जस्टिस गवई (BR Gavai ) को मंगलवार को देश का अगला मुख्य न्यायाधीश यानी CJI नियुक्त किया गया। विधि मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, जस्टिस गवई को देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की घोषणा की गई।
मई 2019 में बने थे SC के जज
जस्टिस गवई का बतौर सीजेआई कार्यकाल 6 महीने का होगा। वह 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट के जज बनाए गए थे। वह इसी साल 23 नवंबर को 65 साल की आयु होने पर रिटायर हो जाएंगे। वह सीजेआई संजीव खन्ना के बाद सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं।
महाराष्ट्र के अमरावती में 24 नवंबर 1960 को जन्मे जस्टिस गवई (BR Gavai ) को 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में प्रमोट किया गया था। फिर वह 12 नवंबर 2005 को हाई कोर्ट के स्थायी न्यायाधीश बनाए गए।
कई अहम फैसलों वाली पीठ का हिस्सा
इससे पहले वह 16 मार्च 1985 को बार में शामिल हुए और नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती यूनिवर्सिटी के स्थायी वकील रहे थे। फिर वह अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त सरकारी अभियोजक नियुक्त किया गया था। इसके बाद उन्हें 17 जनवरी 2000 को नागपुर पीठ के लिए सरकारी वकील नियुक्त किया गया।
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सुप्रीम कोर्ट में आने के बाद जस्टिस गवई यहां की कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने अहम फैसले सुनाए। वह 5 जजों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने दिसंबर 2023 में सर्वसम्मति से पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सही ठहराया था। वह चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द करने वाले पीठ का भी हिस्सा रहे। वह केंद्र के 2016 के उस फैसले को मंजूरी देने वाली पीठ का भी हिस्सा रहे जिसने 4:1 के बहुमत के 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोट को बंद करने पर अपना फैसला सुनाया था।