रंगों का त्योहार होली (Holi) पूरे भारत में हर जगह बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. कृष्ण नगरी कही जाने वाली मथुरा और उसके आस-पास के क्षेत्रों में होली का उत्सव बहुत दिन पहले ही शुरू हो जाता है. मथुरा, वृंदावन और बरसाना की होली के अनेकों रंग हैं. यहां की होली में लोग अपना सबकुछ छोड़कर राधा-कृष्ण की भक्ति में लीन हो जाते हैं. होली के उत्सव को देखने के लिए देश-विदेश से लोग मथुरा, बरसाना पहुंचते हैं.
मथुरा, वृंदावन और बरसाना के लोगों का होली खेलने का अंदाज ही अलग होता है. यहां पर कहीं फूल की होली, कहीं रंग-गुलाल की, कहीं लड्डू तो कहीं लट्ठमार होली (Lathmar Holi) मनाने की परंपरा है. 27 फरवरी यानी कल बरसाने में लड्डू की होली खेली जाएगी. जबकि 28 फरवरी को बरसाने में लट्ठमार होली खेली जाएगी.
कैसे मनाई जाती है लट्ठमार होली (Lathmar Holi ) ?
बरसाना में विश्व-प्रसिद्ध लट्ठमार होली मनाई जाती है. लट्ठमार होली में महिलाएं, जिन्हें हुरियारिन कहते हैं, लट्ठ लेकर हुरियारों को यानी पुरुषों को मजाकिया अंदाज में पीटती हैं. इस लट्ठमार होली में लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. पुरुष इस लट्ठमार होली में पुरुष सिर पर ढाल रखकर हुरियारिनों के लट्ठ से खुद का बचाव करते हैं. इस दिन महिलाओं और पुरुषों के बीच गीत और संगीत की प्रतियोगिताएं भी होती हैं.
लठमार होली (Lathmar Holi) की पौराणिक परंपरा
कहते हैं कि इस परंपरा की शुरुआत लगभग 5000 साल पहले हुई थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार नंद गांव में जब कृष्ण राधा से मिलने बरसाना गांव पहुंचे तो वे राधा और उनकी सहेलियों को चिढ़ाने लगे, जिसके चलते राधा और उनकी सहेलियां कृष्ण और उनके ग्वालों को लाठी से पीटकर अपने आप से दूर करने लगीं. तब से ही इन दोनों गांव में लट्ठमार होली का चलन शुरू हो गया. यह परंपरा आज भी मनाई जाती है. नंद गांव के युवक बरसाना जाते हैं तो खेल के विरुद्ध वहां की महिला लाठियों से उन्हें भगाती हैं और युवक इस लाठी से बचने का प्रयास करते हैं. अगर वे पकड़े जाते हैं तो उन्हें महिलाओं की वेशभूषा में नृत्य कराया जाता है. इस तरह से लट्ठमार होली (Lathmar Holi) मनाई जाते हैं.
कैसे मनाई जाती है बरसाने की लड्डू होली (Laddoos Holi)
कहा जाता है कि नंदगांव से होली खेलने के लिए बरसाना आने का आमंत्रण स्वीकारने की परंपरा इस होली से जुड़ी हुई है, जिसका आज भी पालन किया जा रहा है. यहां सैकड़ों किलो लड्डू बरसाए जाते हैं. इस लड्डू होली को देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं. माना जाता है कि दूर-दूर से आए श्रद्धालु लड्डू का प्रसाद पाकर खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं.
बरसाने की लड्डू होली (Laddoos Holi) की पौराणिक परंपरा
लड्डू होली की परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा बताई जाती है. कथा के अनुसार, द्वापर युग में बरसाने से होली खेलने का निमंत्रण लेकर सखियों को नंद गांव भेजा गया था. राधारानी के पिता वृषभानुजी के न्यौते को कान्हा के पिता नंद बाबा ने स्वीकार कर लिया. नंद बाबा ने एक पुरोहित के हाथों एक स्वीकृति का पत्र भी भेजा. बरसाने में वृषभानुजी ने नंदगांव से आए पुरोहित का काफी आदर सत्कार किया और थाल में रखे लड्डू खाने को दिए थे. साथ ही बरसाने की गोपियों ने परोहित को गुलाल भी लगा दिया. फिर क्या था पुरोहित के पास गुलाल तो था नहीं तो उन्होंने थाल में रखे लड्डुओं को ही गोपियों को मारना शुरू कर दिया. तभी से यह लड्डू होली खेले जाने की परंपरा शुरू हई. इसी परंपरा को बरसाने और नंद गांव के लोग आज भी निभा रहे हैं.