धर्म डेस्क। विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को है। प्रति वर्ष विश्वकर्मा पूजा आश्विन माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार माना जाता है कि इसी दिन भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति हुई थी। विश्वकर्मा पूजन में कारखाने, फैक्ट्रियां में होने वाली मशीनों आदि की पूजा होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार इस समस्त ब्रह्मांड की रचना भी विश्वकर्मा जी के हाथों से हुई है। ऋग्वेद के 10वें अध्याय के 121वें सूक्त में लिखा है कि विश्वकर्मा जी के द्वारा ही धरती, आकाश और जल की रचना की गई है। विश्वकर्मा पुराण के अनुसार आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्मा जी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की।
कहा जाता है कि सभी पौराणिक संरचनाएं, भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित हैं। भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से माना जाता है। पौराणिक युग के अस्त्र और शस्त्र, भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित हैं। वज्र का निर्माण भी उन्होंने ही किया था। भगवान विश्वकर्मा ने ही लंका का निर्माण किया था। भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए एक महल का निर्माण करने के बारे में विचार किया। इसकी जिम्मेदारी शिवजी ने भगवान विश्वकर्मा दी तब भगवान विश्वकर्मा ने सोने के महल को बना दिया। इस महल की पूजा करने के लिए भगवान शिव ने रावण को बुलाया। लेकिन रावण महल को देखकर इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसने पूजा के बाद दक्षिणा के रूप में महल ही मांग लिया।
भगवान शिव ने महल को रावण को सौंपकर कैलाश पर्वत चले गए। इसके अलावा भगवान विश्वकर्मा ने पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगर का निर्माण भी किया था। कौरव वंश के हस्तिनापुर और भगवान कृष्ण के द्वारका का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था।
एक अन्य कथा के अनुसार, कहते हैं सृष्टि को संवारने की जिम्मेदारी ब्रह्मा जी ने भगवान विश्वकर्मा को सौंपी। ब्रह्मा जी को अपने वंशज और भगवान विश्वकर्मा की कला पर पूर्ण विश्वास था। जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया तो वह एक विशालकाय अंडे के आकार की थी। उस अंडे से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई। बाद में ब्रह्माजी ने इसे शेषनाग की जीभ पर रख दिया।
शेषनाग के हिलने से सृष्टि को नुकसान होता था। इस बात से परेशान होकर ब्रह्माजी ने भगवान विश्वकर्मा से इसका उपाय पूछा। भगवान विश्वकर्मा ने मेरू पर्वत को जल में रखवा कर सृष्टि को स्थिर कर दिया। भगवान विश्वकर्मा की निर्माण क्षमता और शिल्पकला से ब्रह्माजी बेहद प्रभावित हुए। तभी से भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला इंजीनियर और वास्तुकार मनाते हैं।