लखनऊ। लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट ग्राउंड जीरो पर जितनी मेहनत अपराधियों को पकड़ने व क्राइम रेट कम करने के लिए करती है, उतनी ही सोशल मीडिया पर एक्टिव रह आम जनता की मदद करने में जुटी रहती है। इसी का नतीजा है कि सोशल मीडिया पर लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट अन्य पुलिस कमिश्ररेट से आगे चल रही है।
प्रदेश में चार महानगरों में पुलिस कमिश्ररेट प्रणाली कार्य कर रही हैं। इनमें लखनऊ, गौतमबुद्ध नगर, वाराणसी व कानपुर शामिल हैं।
लखनऊ पुलिस कमिश्ररेट की बात करें तो ट्विटर में उसके साढ़े तीन लाख से ज्यादा फॉलोवर हैं। वहीं, दूसरे स्थान पर गौतमबुद्ध नगर के 2 लाख 83 हजार, तीसरे स्थान पर कानपुर के 1 लाख 50 हजार और चौथे स्थान पर वाराणसी के 82 हजार फॉलोवर हैं।
एक ट्वीट पर एक्टिव होती है लखनऊ पुलिस
सोशल मीडिया की क्रांति से पहले पीड़ित को पुलिस की मदद के लिए थाने जाकर शिकायत दर्ज करवाना होता था या 100 नम्बर पर कॉल कर सहायता मांगी जाती थी, लेकिन सोशल मीडिया की क्रांति आने व पुलिस की सोशल मीडिया में एंट्री होते ही लोगों के लिए पुलिस सहायता मांगना व शिकायत दर्ज करवाना आसान हो गया है। ऐसे में जब भी कोई पीड़ित जैसे ही अपनी समस्या ट्विटर पर पोस्ट करता है लखनऊ पुलिस कमिश्ररेट की सोशल मीडिया टीम एक्टिव हो जाती है।
तत्काल रूप से पीड़ित की डिटेल लेकर उसके संबंधित थाने को सूचित कर दिया जाता है। पुलिस मुख्यालय यह खुद मानता है कि लखनऊ पुलिस कमिश्ररेट की सोशल मीडिया रेस्पॉन्स टाइम में सबसे अव्वल है। लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट के सोशल मीडिया प्रभारी नितिन यादव बताते हैं कि उनकी टीम 24 घंटे क्लॉक वाइज कार्य करती है। जैसे ही उनकी टीम को ऐसा कोई भी ट्वीट दिखता है जिसमें या तो लखनऊ पुलिस कमिश्ररेट को टैग किया गया हो या फिर लखनऊ की घटना का विवरण हो त्वरित रूप से फॉलोअप में जुट जाती है।
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उनकी टीम ट्विटर पर ही संबंधित थाने को टैग करती है, यही नहीं संबंधित थाने को कॉल कर सूचना दी जाती है, जिससे कम समय में पीड़ित के पास पुलिस सहायता पहुंचाई जा सके। नितिन का कहना है कि लखनऊ पुलिस के ट्विटर पर पुलिस कमिश्रर डीके ठाकुर खुद हर पल नजर रखते हैं, जिससे अब कोई भी घटना न ही पुलिस कर्मचारी छुपा सकता है और न ही किसी फरियादी को अनदेखा ही किया जा सकता है।
थाना नहीं छुपा पाता है घटनाएं
कई ऐसी घटनाएं होती हैं जो या तो थाने स्तर के बाहर आने नहीं दी जाती हैं या फिर अधिकारियों को सूचनाएं पूरी दी नहीं जाती हैं। इससे कई बार अधिकारियों को सूचना न होने की वजह से छोटी घटनाएं बड़ी घटना के रूप में बदल जाती है।
यही नहीं थानों पर जाने वाले शिकायतकर्ताओं की भी कई बार सुनवाई नहीं हो पाती है। ऐसे में सोशल मीडिया पर वरिष्ठ अधिकारियों की नजर होने से थाना स्तर के पुलिस कर्मचारी हीलाहवाली नहीं कर पाते हैं।