भ्रष्टाचार के ट्विन टॉवर (Twin Towers) नोएडा में ढहा दिए गए। इन टॉवरों के निर्माण पर तकरीबन 500 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। टिवन टॉवर (Twin Towers) बनाने वानी कंपनी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसके द्वारा किए गए अवैध निर्माण को विध्वंस का भी सामना करना पड़ सकता है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद प्रशासन ने तकनीक और सावधानी के बीच जिस तरह नोएडा के ट्विन टॉवरों (Twin Towers) को ध्वस्त किया है, उससे एक बात तो साफ हो गई है कि अब अवैध निर्माणों को जमींदोज करने में किसी भी तरह का अगर-मगर चलने वाला नहीं है। इससे एक नजीर बन चुकी है। अवैध निर्माणकर्ताओं को अदालत के स्तर पर भी राहत नहीं मिलने वाली है और आज की कार्रवाई से एक बात उनकेजहन में जरूर बैठ गई होगी कि अवैध निर्माण के बाद वे अब कार्रवाई से बच नहीं सकते। जैसी करनी, वैसा फल, आज नहीं तो निश्चय कल। उन्हें इतना तो समझ में आ ही गया होगा कि कानून के लंबे हाथ देर से ही सही, गिरेबां तक पहुंचते जरूर हैं।
सांप का काटा भले बच जाये लेकिन कानून का मारा व्यक्ति पानी नहीं मांगता। उपभोक्ता वर्ग भी अब जागरूक हो रहा है। वह हाथपर हाथरखकर बैठने वाला नहीं है। प्रदेश की योगी सरकार ने जिस तरह ट्विन टॉवर (Twin Towers) निर्माण में सहायक अधिकारियों और कर्मचारियों के नाम की सूची जारी की है और उनसे नुकसान की भरपाई करने की घोषणा की है, यह एक उचित पहल है लेकिन इतने से ही बात नहीं बनने वाली। इस प्रकरण में राजनीति से जुड़ लोग संलिप्त न रहे हों। इतने बड़े ट्विन टॉवर तत्कालीन सरकार की सहमति के बिना तो बने नहीं होंगे, इसलिए जरूरी है कि तत्कालीन सरकार की जिम्मेदार हस्तियोंको भी जांच के दायरे में लाया जाए।
1,2,3, बूम…, पलक झपकते ही मिट्टी में मिल गए करप्शन के Twin Towers, Video
यह सच है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इन टॉवरों में फ्लैट खरीदने वालों के हितों को प्रभावित न होने देने, फ्लैट की कीमत की वापसी और टॉवरों को तोड़ने पर आए तकरीबन 20 करोड़ के खर्च की भरपाई बिल्डर से करने के निर्देश पहले ही दे रखे हैं। इस निर्णय से अवैध निर्माण करने वाले कॉलोनाइजरों , बिल्डरों में दहशत का संचार तो हुआ ही है। अभी तक सरकार अवैध कॉलोनियों को समय-समय पर वैध करती रही है। शमन शुल्क देकर या सुविधाशुल्क के जरिए भवन निर्माता कंपनियां अधिकारियोंको अपने पक्ष में करने में महारत हासिल कर चुकी थीं। अभी तक उनके किए का खामियाजा अक्सर उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ता था लेकिन अब परिवेश बदल रहा है।
न्यायालय और सरकार दोनों ही मुस्तैदी के साथ भ्रष्टाचार पर प्रहार कर रहे हैं, यह एक स्वस्थ संकेत है। हालांकि इस सच को नकारा नहीं जासकता कि देश में भ्रष्टाचार की जड़ें बेहद गहरी हो चुकी हैं। भ्रष्टाचार शिष्टाचार का स्वरूप ग्रहण कर चुका है, जिससे जनहित का पक्ष गौण हो चुका है और वैयक्तिक हित सर्वोपरि हो गया है। पहले भ्रष्टाचारी को समर्थन नहीं मिलता था लेकिन अब उसके समर्थकों की जमात भी जाति और मजहब के नाम पर सामने आने लगी है। सरकार पर दबाव बनाने लगी है। यह अच्छी बात नहीं है।
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नोएडा में निर्माण मानकों को ताक पर रखकर टिवन टॉवर (Twin Towers) का बनना इसका जीता-जागता उदाहरण है। नागरिक हितों की चिंता किए बगैर टॉवर निर्माता और नोएडा विकास प्राधिकरण ने भ्रष्टाचार की जो संघावृत्ति की, उसकी जितनी भी आलोचना की जाये, कम है। टॉवरों की ऊंचाई बढ़ाने का जो निर्णय लिया गया, उसमें आम आदमी की सुरक्षा की रंच मात्र भी चिंता नहीं की गई।
दो टॉवरों के बीच नियमत: 16 मीटर की दूरी अपेक्षित थी जिसे टॉवर निर्माता से षड़यंत्रपूर्वक 9 मीटर कर दिया था। उपभोक्ताओं को वर्षों तक अदालती मुकदमे लड़ने पड़े लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अनाचार तभी तक बढ़ता है जब तक उसका प्रभावी विरोध नहीं होता। देर आयद, दुरुस्त आयद।