उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि अब एक ऐसी नई हरित क्रांति लाने की आवश्यकता है, जिससे मोटे अनाजों की पैदावार में वृद्धि हो। इससे जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा संकट, भू-जल ह्रास, स्वास्थ्य और खाद्यान्न संकट जैसी समस्याओं से भी निपटा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इससे न केवल कृषि का विकास होगा, बल्कि खाद्य सुरक्षा, उचित पोषण और स्वास्थ्य सुरक्षा भी हासिल होगी। ये फसलें अब हमारे किसानों की समृद्धि बढ़ाने तथा उनकी आयु को दोगुनी करने में भी सहायक हो सकती हैं।
राज्यपाल पटेल सोमवार को उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद के 32वें स्थापना दिवस पर आयोजित ‘मोटे अनाज: प्रतिरक्षा एवं पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने हेतु सम्भावनाएं एवं अवसर’ वेबिनार को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि हर काल बुरा ही नहीं, बल्कि कुछ अच्छे पहलू भी देता है। कोविड-19 महामारी के कारण लोग अपने स्वास्थ्य के साथ खान-पान के प्रति भी अत्यधिक जागरूक हुए हैं। इस महामारी में लोग इम्युनिटी बढ़ाने वाले आहार का सेवन अधिक कर रहे हैं क्योंकि मोटे अनाजों में फाइबर एवं अन्य पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है। इस प्रकार हमारे पारम्परिक भारतीय जीवन में प्रयुक्त होने वाली खाद्य सामग्री कोराना काल में उपयोगी सिद्ध हुई हैं।
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राज्यपाल ने कहा कि हम भारतवासियों को कोरोना काल में इम्युनिटी बढ़ाने की जरूरत इसलिये पड़ी क्योंकि हमने देश के पारम्परिक अनाजों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, संवा, कोदों से दूरी बना ली और गेहूं-चावल का अधिक प्रयोग करने लगे। उन्होंने कहा कि यही मोटा अनाज खाकर हमारे पूर्वज लम्बे समय तक जीवित रहे। आज पूरी दुनिया मोटे अनाज की ओर वापस लौट रही है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी मोटे अनाजों की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है।
उन्होंने कहा कि गेहूं एवं चावल जीवन की ऊर्जा एवं शारीरिक विकास की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, परन्तु इम्युनिटी कम हो रही है। इसके परिणाम स्वरूप मानव शरीर में कई प्रकार की दैहिकीय समस्याओं तथा गम्भीर बीमारियों की समस्याएं उत्पन्न हो गई। यही कारण है कि आज केन्द्र सरकार भी मोटे अनाजों की खेती पर जो दे रही है। आनंदीबेन पटेल ने कहा कि उत्तर प्रदेश का बुन्देलखण्ड क्षेत्र तथा दक्षिण-पश्चिम का मैदानी क्षेत्र मोटे अनाजों की फसलों की खेती के लिए उपुयक्त है, जहां कई दशकों से इसकी खेती की जाती रही है। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में पुनः मोटे अनाज के फसलों की खेती को बढ़ाने के लिए सभी सम्भावनाओं की तलाश की जानी चाहिए।
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उन्होंने कहा कि आज इस प्रकार के अनुसंधान की आवश्यकता है, जिससे इन फसल उत्पादों को सहजता के साथ मूल्य संवर्धंन किया जा सकें। राज्यपाल ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि यह वेबिनार मिलेट्स फसल उत्पादन का मूल्य संवर्धन एवं नवीन उत्पादों के विकास के साथ प्रदेश की पोषण सुरक्षा में मोटे अनाज की फसलों के प्रासंगिक योगदान के संबंध में प्रचार-प्रसार की महती भूमिका निभायेगा।
इस वेबिनार में उत्तर प्रदेश के कृषि, शिक्षा एवं अनुसंधान मंत्री सूर्य प्रताप शाही, उपकार के अध्यक्ष कैप्टन विकास गुप्ता (से.नि.), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक डा. तिलक राज शर्मा, उत्तर प्रदेश के महानिदेशक एवं आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या के कुलपति डा. बिजेन्द्र सिंह, भारतीय मिलेट अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के निदेशक डा. विलास ए. टोनापी, बाजरा जोधपुर के परियोजना समन्वयक डा. सी. तारा सत्यवती तथा उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के निदेशक डा. वी.के. सिंह सहित अन्य अधिकारी, वैज्ञानिक तथा छात्र-छात्राएं जुड़े रहे।
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गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने वर्ष 2018 को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी मांग बढ़ने से अब खाद्य और कृषि संगठन ने वर्ष 2023 को ‘अंतराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ घोषित कर दिया है।