देशभर में गणेश उत्सव (Ganesh Utsav) की शुरुआत 19 सितंबर गणेश चतुर्थी के दिन से होने जा रही है। 10 दिनों के इस उत्सव में भक्त प्रथम पूज्य गणपति बप्पा का आशीर्वाद प्राप्त करने उनका पूजन करेंगे। इस दौरान (Ganesh Utsav) देश के कई इलाकों में भगवान गणेश की बड़ी-बड़ी मूर्तियां भी स्थापित होंगी। भगवान गणेश का आशीर्वाद पाने के लिए भक्तों द्वारा मंत्रों का जप और स्त्रोतों का पाठ भी किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि गणपति अथर्वशीर्ष (Ganpati Atharvashirsha) का पाठ करने से भगवान बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। हम आपको यहां गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने का सही तरीका बता रहे हैं…
गणेश उत्सव (Ganesh Utsav) के 10 दिन स्नान के बाद कुशा के आसन पर बैठकर भगवान गणेश की मूर्ति के सामने दीपक और धूप लगाएं। इसके बाद उन्हें लाल रंग के पुष्प और कुशा अर्पित करें। भगवान से प्रार्थना करें कि जिस मनोकामना के साथ पाठ करने जा रहे हैं उसे पूर्ण करें। इसके बाद शांत मन से गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करना चाहिए।
यह पाठ आप एक बार, 11 बार, 21 बार और श्रद्धा के अनुसार इससे ज्यादा भी कर सकते हैं। मान्यता है कि रोज 21 बार पाठ करने से इसका फल जल्द प्राप्त होता है। पाठ करने के बाद भगवान गणेश (Ganesh) की आरती करें और लड्डुओं या मोदक का प्रसाद अर्पित करें।
अथ श्री गणपति अथर्वशीर्ष (Ganpati Atharvashirsha) स्तुति ।।
ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।।
त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्तासि।।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।।
त्वं साक्षादत्मासि नित्यम्।
ऋतं वच्मि।। सत्यं वच्मि।।
अव त्वं मां।। अव वक्तारं।।
अव श्रोतारं। अवदातारं।।
अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।।
अव पश्चातात्।। अवं पुरस्तात्।।
अवोत्तरातात्।। अव दक्षिणात्तात्।।
अव चोर्ध्वात्तात।। अवाधरात्तात।।
सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं चिन्मय।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं ब्रह्ममय:।।
त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।
सर्व जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।।
सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति।।
त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभ:।।
त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।
त्वं गुणयत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत: त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्ति त्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं।
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव: स्वरोम्।।
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।।
अनुस्वार: परतर:।। अर्धेन्दुलसितं।।
तारेण ऋद्धं।। एतत्तव मनुस्वरूपं।।
गकार: पूर्व रूपं अकारो मध्यरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्य रूपं।। बिन्दुरूत्तर रूपं।।
नाद: संधानं।। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या।।
गणक ऋषि: निचृद्रायत्रीछंद:।। गणपति देवता।।
ॐ गं गणपतये नम:।।