पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की राजनीतिक जमीन खिसक रही है। उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस में भगदड़ मची हुई है। जिस तरह से पार्टी के सांसद, विधायक, मेयर, नगर पालिका और नगर पंचायतों के अध्यक्ष भाजपा का दामन थाम रहे हैं, वह ममता बनर्जी के लिए किसी राजनीतिक झटके से कम नहीं है। ममता बनर्जी के खास रहे शुभेंदु अधिकारी के भाजपा में जाने से तृणमूल कांग्रेस का राज्य के कई जिलों और वहां के लगभग 40 विधानसभा क्षेत्रों में कमजोर होना लगभग तय माना जा रहा है। हालांकि तृणमूल की ओर से लगातार यह बात कही जा रही है कि कुछ विधायकों के साथ छोड़ने से पार्टी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है लेकिन यह ‘दिल बहलाने को गालिब खयाल अच्छा है’ जैसी बात है। अपने लोगों का मनोबल बढ़ाने के लिए भी कुछ इसी तरह की राजनीतिक प्रतिक्रियाएं वांछित होती हैं। नेता वही अच्छा होता है जो अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल न टूटने दे।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दो दिवसीय दौर के बाद बंगाल की राजनीति गरमा गई है। जनता की नब्ज पकड़ने में माहिर अमित शाह अबकि बंगाल के महापुरुषों के बहाने बंगाली अवाम का दिल जीतने की कोशिश की है। उन्होंने गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगेर, स्वामी विवेकानंद, खुदीराम बोस, आचार्य विद्यासागर जैसे महापुरुषों को प्रणाम किया। उनके स्थान तक गए। उन्हें श्रद्धांजलि दी। अपनी जनसभा में उनका जिक्र किया। बंगाली लोकगायक बाउल और एक किसान के घर भोजन किया। एक किसान के घर भोजन कर उन्होंने देश के किसानों को भी संदेश देने की कोशिश की है कि किसानों को सम्मान देने और उनके हितों की रक्षा उनकी पार्टी ही कर सकती है। बोलपुर की सभा में उन्होंने इस बात के संकेत भी दिए कि दिल्ली बार्डर पर आंदोलित किसानों से कृषि मंत्री तोमर एकाध दिन में ही वार्ता कर सकते हैं।
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बंगाल के प्रख्यात देवी मंदिरों में दर्शन कर जहां उन्होंने बंगाल की संस्कृति से जुड़ने की कोशिश की, वहीं एक बार सोनार बांग्ला के निर्माण का सपना करने के लिए भाजपा को मौका देने की भी राज्य की जनता से अपील की। उन्होंने कहा कि जिस तरह बंगाली अवाम ने तीस साल कांग्रेस, 21 साल वामदलों और 10 साल ममता बनर्जी को दिए हैं, उसी तरह एक मौका भाजपा को भी दिया जाना चाहिए।
नड्डा के काफिले पर हुए हमले पर आपत्ति जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा नेताओं पर जितने हमले होंगे, बंगाल में भाजपा उतनी ही मजबूत होगी।
इसमें शक नहीं कि भाजपा की कोशिश पार्टी के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जन्मभूमि बंगाल में कमल खिलाने की बहुत पहले से रही है लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो सकी थी। ममता के कांग्रेस छोड़ने के बाद वहां कांग्रेस को कमजोर करने और ममता को मजबूती देने का काम भी भाजपा ने ही किया था। ममता के साथ मिलकर उसने वामदलों को भी कमजोर करने में बड़ी भूमिका निभाई, अब वही भाजपा पश्चिम बंगाल में ममता का सिंहासन हिलाने पर आमादा है। जब तक ममता भाजपा के साथ थीं तब तक तो उनकी राह आसान थी लेकिन बदलते दौर में वे जिस तरह भाजपा पर जोरदार हमले कर रही हैं, केंद्र सरकार की योजनाओं को बंगाल में लागू होने नहीं दे रही हैं और यही नहीं जिस तरह बंगाल में भाजपाइयों पर हमले हो रहे हैं, उसे देखते हुए उनसे भाजपा की नाराजगी स्वाभाविक भी है।
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देहाती कहावत है कि जो नाईन चौका पुराती है, वही मांग भी धुलवाती है। कभी भाजपा ने ममता बनर्जी का साथ दिया था, बंगाल में उसे मजबूती दी थी, आज वही भाजपा ममता के लिए परेशानी का सबब बन गई है। भाजपा सांसद सौमित्र खान की पत्नी सुजाता मंडल खान के तृणमूल कांग्रेस में जाने से ममता को थोड़ी तसल्ली हो सकती है लेकिन जिस तरह भाजपा की योजना मार्च तक तृणमूल के नेताओं को एक—एक कर अपने साथ करने की है, वह ममता बनर्जी के लिए बेहद आत्मधाती साबित हो सकता है। इससे बंगाली अवाम के बीच उनकी राजनीतिक रूप से कमजोर होने का संदेश जाएगा। अमित शाह के 200 से अधिक सीटें जीतने और चुनाव तक ममता के अकेले हो जाने के दावे की अपनी राजनीतिक गंभीरता है, इसे बहुत हल्के में नहीं लिया जा सकता। भले ही तृणमूल कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत कुमार बंगाल विधानसभा में भाजपा के दहाई तक पहुंचने का उन्हें दिलासा दें लेकिन ममता बनर्जी को अमित शाह की योग्यता और दक्षता का पता है।
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अमित शाह को आधुनिक भारत का चाणक्य यूं ही नहीं कहा जाता है। गुजरात के गृहमंत्री रह चुके अमित शाह के प्रबंधन में गुजरात में 40 छोटे—बड़े चुनाव हुए थे और उसमें किसी एक चुनाव में भाजपा के हारने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। यूपी के लोकसभा चुनाव प्रभारी बनने के बाद वर्ष 2014 में भाजपा अगर 73सीटें जीती तो यह अमित शाह का ही रणनीतिक कौशल था। देश में दूसरी बार केंद्र सरकार का बनना और 19 राज्यों में भाजपा की सरकार का होना उनके राजनीतिक कौशल और कूटनीति का परिचायक है। इसमें शक नहीं कि अपने दस साल के शासन में ममता बंगाल को विकास की सही दिशा नहीं दे पाई हैं। वैसे भी अमित शाह ने अपने दो दिन के राजनीतिक दौरे में जिस तरह कांग्रेस और वामदलों के बड़े नेताओं का साथ हासिल किया है, उससे बंगाल में परिवर्तन की संभावना तो बलवती हुई ही है।
अमित शाह ने बंगाली को ही मुख्यमंत्री बनाने की बात कहकर माटी, मानुष और जय बांग्ला के ममता के नारों को भी कुंद कर दिया है। उनकी सोच पर भी सवाल उठा दिए हैं। कुल मिलाकर अमित शाह ने बंगाल को मथ दिया है। विजयवर्गीय के शब्दों में अभी तो यह ट्रेलर है, राजनीतिक फिल्म तो आगे है। कुल मिलाकर यह कहें कि इस बार का मुकाबला सीधे तौर पर तृणमूल और भाजपा के बीच ही है। पार्टी कार्यकर्ताओं का विश्वास बनाए रखने के लिए ममता को अब अमित शाह से भी बड़ा रोड शो करना होगा और ऐसा वे करेंगी भी। दोनों दल इस तरह के बड़े रोड शो करते रहेंगे लेकिन असल शो तो बंगाली जनमानस ही करेगा।