नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने एक बलात्कार पीड़िता की गर्भपात कराने की उसकी याचिका को 12 दिनों तक टालने पर गुजरात उच्च न्यायालय की शनिवार को कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि ऐसे मामले में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं, बल्कि तत्परतापूर्वक निपटा जाना चाहिए।
गुजरात उच्च न्यायालय में सुनवाई टालने का आदेश 17 अगस्त को पारित किया गया था। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने गुजरात के एक मामले में ‘विशेष सुनवाई’ करते हुए भ्रूण को हटाने की संभावना का पता लगाने के लिए भरूच की एक मेडिकल बोर्ड से एक नई रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।
पीठ ने कहा कि वह इस मामले में सोमवार को अगली सुनवाई कर इस मसले पर विचार करेगी। पीड़िता के अधिवक्ता ने पीठ के समक्ष कहा कि उच्च न्यायालय ने मामले की तारीख 23 अगस्त तय की है, जिससे उसकी गर्भावस्था 28 सप्ताह की हो जाएगी।
अधिवक्ता ने हालांकि कहा कि, याचिका सात अगस्त को दायर कई और 11 अगस्त को सुनवाई हुई थी।
उन्होंने शीर्ष अदालत (Supreme Court) के समक्ष यह भी कहा कि याचिकाकर्ता महिला को चार अगस्त को अपनी गर्भावस्था के बारे में पता चला और उसने सात अगस्त को उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने शीर्ष अदालत की पीठ के समक्ष यह भी कहा कि इस मामले में उच्च न्यायालय का आदेश रिकॉर्ड पर भी उपलब्ध नहीं था।
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शीर्ष अदालत (Supreme Court) की पीठ ने उच्च न्यायालय का आदेश उपलब्ध नहीं होने की याचिकाकर्ता के वकील की बात पर कहा, “अगर विवादित आदेश मौजूद ही नहीं है तो हम कोई आदेश कैसे पारित कर सकते हैं। इस मामले को स्थगित करने में मूल्यवान दिन बर्बाद हो गए हैं। देखिए, ऐसे मामलों में तात्कालिकता की भावना होनी चाहिए न कि उदासीन रवैया। हमें ऐसी टिप्पणियाँ करने के लिए खेद है। हम इसे सोमवार को पहले मामले के रूप में सूचीबद्ध करेंगे।”
शीर्ष अदालत (Supreme Court) ने आगे कहा कि चूंकि कीमती समय पहले ही बर्बाद हो चुका है, इसलिए भरूच के मेडिकल बोर्ड से नई रिपोर्ट मांगी जा सकती है। न्यायमूर्ति नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “हम याचिकाकर्ता को एक बार फिर से पूछताछ के लिए केएमसीआरआई के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश देते हैं और नवीनतम स्थिति रिपोर्ट कल रविवार शाम छह बजे तक इस अदालत में प्रस्तुत की जा सकती है।”