लखनऊ। सम्भल की डेमोग्राफी के बदलते स्वरूप और दंगों (Sambhal Violence) की साजिशों पर तैयार 450 पन्नों की रिपोर्ट ने बड़ा खुलासा किया है। रिपोर्ट कहती है कि जब तक सम्भल नगर पालिका में हिंदुओं की आबादी 40 प्रतिशत से ऊपर रही, तब तक दंगे, लव जिहाद और धर्मांतरण के जरिए हिंदुओं को निशाना बनाया गया और मामला हिन्दू बनाम मुस्लिम के रूप में पेश किया गया। लेकिन जैसे ही हिन्दुओं की संख्या घटकर 20 प्रतिशत से नीचे आई, समीकरण पूरी तरह बदल गए। अब तुर्क मुसलमान खुद को सम्भल का मालिक मानकर कन्वर्टेड हिन्दू पठानों को अपना गुलाम और नौकर बताने लगे।
इसी पृष्ठभूमि में 22 नवम्बर 2024 को समाजवादी पार्टी के सांसद ज़िया-उर-रहमान बर्क ने जामा मस्जिद से जहरीला भाषण दिया। उन्होंने कहा कि “हम इस देश के मालिक हैं, नौकर और गुलाम नहीं।” इस बयान से सम्भल का माहौल भड़क उठा। कन्वर्टेड हिन्दू पठानों ने इसका विरोध किया तो 24 नवम्बर को तुर्क और पठान आमने-सामने आ गए। हिंसा में क्रॉस फायरिंग से चार लोगों की मौत हुई।
दशकों से सुनियोजित रणनीति-
रिपोर्ट बताती है कि आज़ादी के समय सम्भल नगर पालिका में 45 प्रतिशत हिंदू थे, लेकिन आज यह संख्या घटकर महज़ 15 प्रतिशत रह गई है। यह बदलाव किसी प्राकृतिक कारण से नहीं, बल्कि सुनियोजित हिंसा और कत्लेआम का परिणाम है। 1936 से 2019 तक सम्भल में 15 बड़े दंगे हुए, जिनमें 213 लोग मारे गए। इनमें से 209 हिंदू थे। 29 मार्च 1978 को होली के बाद हुए नरसंहार में 184 हिंदुओं की हत्या की गई और एक भी मुस्लिम नहीं मारा गया। इसके उलट सभी दंगों और उपद्रवों में कुल चार मुस्लिम मारे गए, 1992 बाबरी उपद्रव में दो और 2019 सीएए हिंसा में दो।
तीर्थस्थल और पावन कूप बने निशाना-
डेमोग्राफी बदलने की इस प्रक्रिया में हिन्दू धार्मिक धरोहर भी नहीं बच पाईं। सम्भल (Sambhal) में 68 तीर्थ स्थल और 19 पावन कूप थे, जिन्हें तुष्टिकरण की राजनीति से धीरे-धीरे कब्जा लिया गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 30 मई 2025 को इन पावन कूपों के पुनरुद्धार का शिलान्यास किया और खोई विरासत को वापस लाने की पहल की।
हरिहर मंदिर और पुलिस की सख्ती-
हरिहर मंदिर पर बाबर का जिन्न एक बार फिर निकाला गया, लेकिन इस बार योगी सरकार की सख्ती और पुलिस की मौजूदगी से हिन्दू मोहल्लों में खूनखराबे की योजना नाकाम रही। बलवाइयों को बाहर से बुलाया गया था, फिर भी दंगा फैल नहीं सका। सम्भल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि पुलिस की तत्परता से हिन्दू सुरक्षित बचे और दंगाइयों की योजना ध्वस्त हो गई।
विदेशी हथियार और पाकिस्तानी कनेक्शन-
रिपोर्ट का सबसे बड़ा खुलासा गैंग लीडर शरिक साठा से जुड़ा है। शरिक पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के साथ मिलकर जाली नोटों का कारोबार करता था और दंगों में सक्रिय रहा। हिंसा में जो हथियार जब्त हुए उनमें कई विदेशी हथियार थे, जिन पर यूएसए में बने होने की मुहर दर्ज थी। यह संकेत है कि सम्भल की हिंसा का खेल केवल स्थानीय राजनीति तक सीमित नहीं, बल्कि इसके तार अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से भी जुड़े थे।
सपा सांसद और इंतेज़ामिया की भूमिका-
रिपोर्ट में साफ लिखा है कि सपा सांसद ज़िया-उर-रहमान बर्क, विधायक के बेटे सुहैल इक़बाल और जामा मस्जिद की इंतेज़ामिया कमेटी ने मिलकर पूर्वनियोजित साजिश रची थी। नमाजियों को भड़काना, दंगाइयों को बुलाना और विदेशी हथियारों का इस्तेमाल-सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से किया गया।
राजनीतिक भूचाल की आहट-
सम्भल (Sambhal) रिपोर्ट केवल हिंसा की कहानी नहीं है, यह तुष्टिकरण की राजनीति, हिन्दुओं को खत्म करने के एजेंडे और बदलती डेमोग्राफी का दस्तावेज है। दशकों से सुनियोजित तरीके से हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया, धार्मिक धरोहरों पर कब्जा किया गया और जैसे ही हिन्दुओं की संख्या घटी, मुसलमानों के भीतर भी मालिक और गुलाम की लड़ाई छिड़ गई। योगी सरकार ने पहली बार इस खेल पर लगाम लगाई है। यही वजह है कि इस रिपोर्ट से न सिर्फ प्रदेश बल्कि पूरे देश की राजनीति में भूचाल आना तय है।