भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता एवं उत्तर प्रदेश व्यापारी कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष रविकान्त गर्ग ने केन्द्र सरकार द्वारा लागू कृषि सुधार कानूनों के विरोध में कतिपय किसान संगठनों द्वारा किये जा रहे आन्दोलन को किसानों के हितों के विरुद्ध बताते हुये देश के सभी किसान संगठनों से कृषि सुधार कानूनों का गहराई से अध्ययन किये जाने की अपील की है ।
श्री गर्ग ने रविवार को यहां पत्रकारों से बातचीत में कहा कि विरोधी दल किसानों को भड़का रहे है जो शर्मनाक है। आम किसानों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की केन्द्र सरकार द्वारा पारित कृषि सुधार बिलों के अनुरुप व्यवस्था का एक वर्ष प्रयोग करने तथा भ्रमित न होने की अपील करते हुए कहा है कि इससे उन्हें इस बिल की अच्छाइयों का खुद ही एहसास हो जाएगा।
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उन्होने कहा कि किसान और व्यापारीं का सदैव से चोली-दामन का साथ रहा है, देश की अर्थव्यवस्था चलाने में कृषि, व्यापार एवं उद्योग का महत्वपूर्ण योगदान है, यह दोनों ही वर्ग सदैव से राष्ट्र एवं समाज के हितचिंतक की भूमिका भी निभाते रहे हैं, इसलिए केन्द्र सरकार द्वारा लागू कृषि सुधार कानूनों को व्यापक दृष्टिकोंण से देखे जाने की आवश्यकता है ।
एक प्रश्न के उत्तर में रविवार को व्यापारी नेता ने कहा कि प्रस्तुत कृषि सुधार कानूनों एवं केन्द्र सरकार के कार्यो का विस्तार पूर्वक अध्ययन करने के पश्चात वे दावे से कह सकते हैं कि उक्त कृषि सुधार कानून से किसानों का कोई शोषण अथवा उत्पीड़न नहीं हो सकता, बल्कि छोटे-बड़े किसानों को इस कानून से अनेक सुविधायें प्राप्त होगीं तथा आय के साधन बढ़ेगें। व्यापारी नेता ने किसान संगठनों द्वारा उठाये गये सवालों का हल उक्त बिल में बिन्दुवार खोजने के उपरान्त कहा है कि सभी प्रमुख आंशकाओं का निराकरण बिल में मौजूद है, उसके पश्चात भी केन्द्र सरकार द्वारा संशोधनों के लिए बातचीत का प्रस्ताव पूर्णतया उचित एवं व्यवहारिक एवं न्यायसंगत है ।
उद्योगपतियों द्वारा किसानों की जमीन पर कब्जा कर लेने की आंशका को निर्मूल बताते हुए उन्होंने कहा कि बिल के खण्ड-8 में उल्लिखित किसान से किये जा रहे अनुबन्ध (एग्रीमेंट) में किसान की जमीन के किसी प्रकार से ट्रान्सफर, खरीद, लीज, बन्धक बनाये जाने को प्रतिबन्धित किया गया है ।
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यूपीए की सरकार एवं वर्तमान केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य के आंकड़े प्रस्तुत करते हुए गर्ग ने कहा कि जहां यूपीए की सरकार के समय 2009-10 में धान का समर्थन मूलय 950 रूपए, और वर्ष 2013-14 1310 रूपए प्रति कुंतल था वहीं वर्तमान केन्द्र सरकार ने यह मूल्य लगभग दूना निर्धारित करते हुए 2020-21 1868 रूपए प्रति कुंतल किया है । इसी प्रकार इसी यूपीए सरकार के कार्यकाल में गेहूँ का न्यूनतम समर्थन मूल्य वर्ष 2009-10 में रु. 1080 तथा वर्ष 2013-14 में रु. 1350 प्रति कुंतल था जिसे केन्द्र की वर्तमान भाजपा सरकार ने बढ़ाकर वर्ष 2020-21 में रु. 1925 प्रति कुंतल कर दिया है। यह मोदी सरकार की किसान समर्थक नीति का परिणाम है ।
व्यापारी नेता गर्ग के तुलनात्मक आंकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा कि किसानों की आय को दोगुना करने के संकल्प को पूरा करने के लिये यू.पी.ए. सरकार से दोगुना गेहूँ की खरीद वर्तमान सरकार द्वारा की गई। उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार द्वारा वर्ष 2009 से 2014 के मध्य 1.5 लाख करोड़ रु. मूल्य की गेहूँ खरीद के मुकाबले वर्ष 2014 से 2019 के मध्य रु. 3 लाख करोड़ मूल्य की गेहूँ खरीद तथा इसी समयावधि में यू.पी.ए. सरकार द्वारा रु. 2 लाख करोड़ टन मूल्य के धान की खरीद के मुकाबले 5 लाख करोड़ रुपये के धान की खरीद सीधे किसानों से किया जाना और इसी अवधि में यू.पी.ए. सरकार द्वारा मात्र 650 करोड़ रु. की दालों की खरीद के सापेक्ष मोदी सरकार द्वारा 50000 (पचास हजार) करोड़ रु. के मूल्य की दालें किसानों से खरीदा जाना अर्थात साढ़े सात हजार गुना से अधिक मूल्य की दालों की खरीद एवं दलहन-तिलहन के खरीद मूल्यों में वृद्धि ऐतिहासिक उपलब्धि है, जो केन्द्र सरकार की नीति और नियति को स्पष्ट कर रही है।