नई दिल्ली। अगले दस सालों में व्यक्त की गई है। इससे पेट्रोकेमिकल एवं तेल उद्योग में निवेश किए गए चार सौ अरब डालर की राशि भी खतरे में है। सिस्टेमिक्यू और कार्बन ट्रैकर द्वारा शनिवार को जारी रिपोर्ट द फ्यूचर इज नाट इन फ्लास्टिक में कहा गया है कि एक तरफ दुनिया में प्लास्टिक को हतोत्साहित करने के प्रयास चल रहे हैं, क्योंकि यह पर्यावरण के लिए घातक है, जबकि दूसरी तरफ तेल उद्योग अभी भी इसी पर दांव लगा रहा है, लेकिन भविष्य में उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
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दरअसल, प्लास्टिक उद्योग में तेल की बड़ी खपत होती है। रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक के उपयोग को घटनो के वैश्विक प्रयासों के चलते 2027 तक प्लास्टिक की वार्षिक वृदिध दर चार फीसदी से घटकर एक फीसदी रह जाएगी। इससे तेल की मांग में भारी गिरावट आएगी। तब नवीन ऊर्जा अपेक्षाकृत सस्ती होने की वजह से भी तेल की मांग कम होने लगेगी।
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रिपोर्ट के अनुसार कुल उत्पादित होने वाले प्लास्टिक के 36 फीसदी का उपयोग सिर्फ एक बार होता। पर्यावरण को प्रदूषित करने में प्लास्टिक की हिस्सेदारी 40 फीसदी की है तथा सिर्फ पांच फीसदी प्लास्टिक ही रिसाइकिल हो पाता है। भारत समेत कई देश प्लास्टिक के इस्तेमाल को हतोत्साहित कर रहे हैं। देश में प्लास्टिक के एक बार इस्तेमाल होने वाले कई सामानों को प्रतिबंधित किया जा चुका है। यूरोपीय संघ ने रिसाइकिल नहीं होने पर प्लास्टिक कचरे पर प्रति टन 800 यूरो टेक्स लगाने का प्रस्ताव किया है।