हिंदू धर्म में एकादशी पर्व का विशेष महत्व है। ऐसे में वैशाख माह के कृष्ण पक्ष में वरुथिनी एकादशी मनाई जाती है, जो इस साल 4 मई को है। पौराणिक मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) की धार्मिक महत्व खुद भगवान कृष्ण अर्जुन को बताया था। इस व्रत को यदि विधि-विधान से किया जाता है तो जातक को सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
इसलिए किया जाता है एकादशी व्रत
वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहते हैं। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु के सभी अवतार प्रसन्न होते हैं। पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, इस व्रत को करने से व्रती को जीवन में कभी धन की कमी नहीं होती है। कर्ज से मुक्ति मिलती है और परिवार में संपन्नता आती है।
वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का पूजा मुहूर्त
वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) तिथि का आरंभ 3 मई की रात 11.24 बजे होगा और इस तिथि का समापन 4 मई को 8.38 बजे पर होगा। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए शुभ समय सुबह 07.18 बजे से सुबह 08.58 बजे तक रहेगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, वरुथिनी एकादशी के दिन त्रिपुष्कर योग, इंद्र योग और वैधृति योग बनने से यह तिथि शुभ मानी जा रही है।
वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का पौराणिक महत्व
धार्मिक मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) के दिन भगवान विष्णु के साथ धन की देवी माता लक्ष्मी की भी पूजा करना चाहिए। वरुथिनी एकादशी के महत्व के बारे में खुद भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया था। इस व्रत को करने से कन्यादान के समान पुण्य मिलता है। पौराणिक मान्यता है कि राजा मान्धाता को वरुथिनी एकादशी व्रत करके ही स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी।