लाइफस्टाइल डेस्क। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में खाने-पीने के साथ-साथ पहनना और रहना सभी का संबंध पर्यावरण से सीधे तौर पर सम्बंधित है। पर्यावरण के संरक्षण के लिए जो लोग शिद्दत से काम करते हैं, उनका रहन-सहन कैसा है और वो किस तरह के फैशन की वकालत करते हैं। जिज्ञासा होना चाहिए कि आपके किस एक्शन से पर्यावरण पर क्या असर पड़ सकता है।
हमें अपने पर्यावरण के संरक्षण के हिसाब से ही अपना रहन सहन अपनाना चाहिए । क्या आप जीन्स पहनते हैं? आधी से ज़्यादा दुनिया ब्लू या किसी और रंग के डेनिम जीन्स पहनने का शौक रखती है, लेकिन इस फैक्ट से बेखबर हैं कि इस जीन्स के सूक्ष्म पार्टिकल नदियों, झीलों या समुद्र में जाकर मिलते हैं और नुकसान करते हैं।
रिसर्च में पता चला है कि जीन्स जब धोई जाती है, तो सूक्ष्म रेशे उसमें से निकलते हैं और व्यर्थ पानी के साथ बह जाते हैं। हालांकि रिसर्च में अभी यह पता नहीं चला है कि इससे वाइल्डलाइफ और पर्यावरण को किस तरह नुकसान होता है, लेकिन चिंता ज़रूर जताई गई है। कहा गया है कि भले ही डेनिम कॉटन से बनता है, लेकिन इसमें कई तरह के रसायनों का इस्तेमाल होता है, जिनमें माइक्रोफाइबर भी शामिल हैं।
जितनी बार जीन्स धोई जाती है, ये रेशेनुमा माइक्रोफाइबर हर बार निकलते हैं और व्यर्थ पानी के साथ नदियों, झीलों या अन्य जलस्रोतों में पहुंच जाते हैं और प्रदूषण का कारण बनते हैं। रिसर्च में वैज्ञानिकों ने जलस्रोतों की तलछट में मिले कई सूक्ष्म रेशों का परीक्षण कर पता किया कि वो जीन्स से निकले सूक्ष्म कण ही हैं।
अमेरिका और कनाडा के कई हिस्सों में कई छोटी बड़ी झीलों की तलछट में डेनिम माइक्रोफाइबर का प्रदूषण पाया गया। चूंकि दुनिया में कई लोग जीन्स पहन रहे हैं इसलिए शोधकर्ताओं ने इस प्रदूषण को जीन्स के साथ जोड़कर रिसर्च की। ये भी पता चला कि जीन्स की लिए सिंथेटिक डाय का इस्तेमाल होता है। सिंथेटिक प्राकृतिक पदार्थ नहीं है और जीन्स बनाने में इस्तेमाल होने वाले कुछ पदार्थ तो ज़हरीले तक भी होते हैं।