हमारे ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड, ने लम्बे संघर्ष के बाद, अधिकतर, बेगुनाह मुस्लिम महिलाओं को तलाक़ के क़ानून से राहत मिली, उनको व उनके मां पिता भाई, परिवार के बहन बेटी के बसे बसाए, घर के टूटने के डर कष्ट से सारा जीवन सहमा सा रहता था।
ऐसे में भारत की सर्वोच्च न्यायालय नेपाक क़ुरान के क़ानून के ख़िलाफ़ घर टूटने पर रोक लगाने के फ़ैसले के साथ सरकार को संसद मे सर्वसहमती से मुस्लिम महिला परिवार सुरक्षा में क़ानून बनाकर परिवार को टूटने से बचाने में रहत मीली।
परन्तु अभी भी इस क़ानून में, समाज मे न्यायालयों में प्रशासनिक स्तर पर, काउंसलिंग की, सुधार, और जागरूकता की सख़्त ज़रूरत है।
हम सभी, समाजसेवियों को, और संविधानिक पद पर, न्यायायिक संस्थाओं की ज़िम्मेदारी बनती है, अगर परिवार के टूटने के मसलों पर, पति पक्ष या पत्नी पक्ष के पीड़ित आते हैं तो ज़रूर रहत दिया जाना चाहिए अनदेखा नहीं करना चाहिए।
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अभी भी भारत के कुछ प्रदेश ऐसे हैं जहां महिलाओं के साथ, असमानता की मानसिकता है, मगर भारत के कुछ प्रदेश जहां शिक्षा 100% हैं वहां लिंगभेद, या असमानता का व्यवहार नही होता, इसलिए हर घर शिक्षित, हो ताकि घर, परिवार, समाज, परिवार एवं देश की तरक्की के हर क्षेत्र में बिना लिंगभेद के तरक़्की करें खुशहाल हों ।