नई दिल्ली। देश की अदालतों में मुकदमों और जेल में कैदियों के लगातार बढ़ रही तादाद को कम करने की लिए सुप्रीम कोर्ट ने कैदियों की सजा में सशर्त कटौती के निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि, अपराधियों को उनके लिए तय की गई सजा अवधि में आधे से ज्यादा समय सलाखों के पीछे गुजारने के बाद रिहा करने पर विचार किया जाए।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने 3 , 5 , 7 साल और 10 साल के साथ ही उम्र कैद की सजा पर भी अदालतों और सरकारों को अपने विवेक से विचार करने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के मुताबिक, आधी से ज्यादा सजा काटने के बाद अपराधी को कुछ शर्तों के साथ रिहा किया जा सकता है। इस दिशानिर्देश की बारीकियां भी अदालत ने स्पष्ट कर दी हैं।
इस दौरान न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि, कैदी अगर लिखित में अदालत को ये आश्वासन देते हैं कि उन्होंने जो अपराध किया है उसके लिए उन्हें पछतावा है। कानून ने जो भी सजा उन्हें दी है, वो सही है तो सरकार ऐसे कैदियों की बची सजा माफ करने की प्रक्रिया शुरू कर देगी।
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साथ ही, दोनों जस्टिसों की पीठ ने कहा कि, सरकार अपने विशेषाधिकार के तहत ऐसे कैदियों को जेल से रिहा करने की सिफारिश और कार्यवाही भी कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए समय सीमा भी तय कर दी है। हर जिला जेल के अधीक्षक ऐसे कैदियों की पहचान कर उनकी सूचना और सूची जिला विधिक सेवा समिति को देंगे। विधिक सेवा समिति इनकी बाकायदा अर्जी बनाएगी और उसे सरकार को भेजेगी। राज्य सरकारें इन अर्जियों पर तय समय सीमा के भीतर रिहाई को लेकर फैसला लेंगी।
जानकारी के मुताबिक, कैदियों को छोड़ने के मामले में इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को भी नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा है कि, यूपी इस मामले में सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है। यहां ऐसे कैदियों की तादाद भी ज्यादा है, जिन्हें उम्र कैद या ज्यादा अवधि की सजा हुई हो। कोर्ट ने यूपी सरकार को ये चेतावनी भी दी कि एक महीने में जवाब नहीं आया तो मुख्य सचिव को अदालत में तलब किया जाएगा।