नई दिल्ली। होली से पहले वाले आठ दिनों को अशुभ माना जाता है। इन दिनों में कोई शुभ काम नहीं करते। इन्हें ही होलाष्टक (Holashtak) कहते हैं। जो इस बार 10 से 17 मार्च, गुरुवार तक रहेगा। इन दिनों में भगवान कृष्ण के मंदिरों में विशेष पूजा-श्रंगार के साथ उत्सव मनाए जाते हैं। भक्ति और पूजा-पाठ के नजरिये से तो ये समय खास होता है। लेकिन इन दिनों को अशुभ मानने के पीछे दो कथाएं बताई जाती हैं। जिनमें एक शिवजी से जुड़ी है। दूसरी, भगवान विष्णु और उनके भक्त प्रह्ललाद (Prahlad) से।
जानिए क्या है होलाष्टक (Holashtak) को अशुभ मानने की वजह…
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रह्लाद (Prahlad) बचपन से ही भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। ये देख उनके पिता हिरण्यकश्यप ने उनके गुरु से कहा, कुछ ऐसा करो कि ये विष्णु का नाम रटना बंद कर दे। बहुत कोशिश के बाद भी गुरु असफल रहे। तब असुर राज ने पुत्र की हत्या का आदेश दे दिया। प्रह्लाद (Prahlad) को जहर पिलाया, तलवार से प्रहार किया, नाग के सामने छोड़ा, हाथियों से कुचलवाना चाहा, लेकिन हर बार भगवान ने प्रह्लाद की जान बचाई।
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मान्यता है कि होली से पहले के आठ दिन यानी अष्टमी से पूर्णिमा तक प्रहलाद (Prahlad) को काफी यातनाएं दी गई थीं। इसी की याद में होलाष्टक (Holashtak) मनाया जाता है। अंत में होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया, लेकिन प्रह्लाद (Prahlad) बच गए और वह खुद जल गई।
एक अन्य कथा के अनुसार हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भोलेनाथ से हो, लेकिन शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। तब कामदेव पार्वती की सहायता को आए। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और शिव की तपस्या भंग हो गई। शिवजी को क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। कामदेव का शरीर उनके क्रोध की ज्वाला में भस्म हो गया। फिर शिवजी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
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इस वजह से पुराने समय से होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप से जलाकर सच्चे प्रेम के विजय का उत्सव मनाया जाता है। जिस दिन शिव ने कामदेव को भस्म किया था वह दिन फाल्गुन शुक्ल अष्टमी थी। तभी से होलाष्टक की प्रथा शुरू हुई।
होलाष्टक (Holashtak) के 8 दिनों के दौरान खासतौर पर शादियां, गृह प्रवेश, मुंडन और अन्य शुभ कामों को करने की मनाही होती है। साथ ही इस दौरान अंतिम संस्कार को छोड़ सभी संस्कारों की मनाही होती है। होलाष्टक के दौरान सगाई, गोद भराई और ग्रह शांति भी नहीं की जाती है। इन दिनों में बहु या बेटी अपने माता-पिता के घर भी नहीं जाती है।
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होलाष्टक (Holashtak) में स्नान-दान, जाप, देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए। इन दिनों में भक्त प्रह्ललाद ने भगवान विष्णु की आराधना की थी इसलिए विष्णु पूजा का विशेष विधान ग्रंथों में बताया है। इस दौरान भजन-कीर्तन, वैदिक अनुष्ठान और यज्ञ करने चाहिए ताकि कष्टों से मुक्ति मिल सके। होलाष्टक में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से हर तरह के रोग और कष्टों से छुटकारा मिलता है और उम्र बढ़ती है।