• About us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Terms & Conditions
  • Contact
24 Ghante Latest Hindi News
  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म
  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म
No Result
View All Result

मां शारद का प्राकट्य पर्व : बसंत पंचमी

Writer D by Writer D
04/02/2022
in Main Slider, उत्तर प्रदेश, धर्म, फर्रूखाबाद, फैशन/शैली
0
14
SHARES
176
VIEWS
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

अन्य नाम             – वसंत पंचमी

अनुयायी               हिंदू, भारतीय

उद्देश्य    — बसंत पंचमी के पर्व से ही ‘बसंत ऋतु’ का आगमन होता है। शांत, ठंडी, मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह से स्पर्श करती है।

प्रारम्भ:  पौराणिक काल

तिथि :   माघ शुक्ल पंचमी

धार्मिक मान्यता ब्राह्मण-ग्रंथों के अनुसार वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं। ये ही विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्वनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित की गयी है।

अन्य जानकारी   ब्रज का यह परम्परागत उत्सव है। द्रविड़ भूभाग इस नव विद्यार्थी का गुरुजन विद्यारम्भ कराया जाता है तो वहीं ब्रजवासी बंसती वस्त्र पहनते हैं। लोकप्रिय खेल पतंगबाज़ी, बसंत पंचमी से ही जुड़ा है। बसंत पंचमी भारत में हिन्दुओं का प्रसिद्ध त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा सम्पूर्ण भारत में बड़े हर्ष उल्लास के साथ की जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं। बसंत पंचमी के पर्व से ही ‘बसंत ऋतु’ का आगमन होता है। शांत, ठंडी, मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह से स्पर्श कर नव चैतन्यता का संचार करती है। पत्रपटल तथा पुष्प खिल उठते हैं। स्त्रियाँ पीले-वस्त्र पहन बसंत पंचमी के इस दिन के सौन्दर्य को और भी अधिक श्रीवृद्धि कर देती हैं। लोकप्रिय खेल पतंगबाज़ी, बसंत पंचमी से ही जुड़ा है। यह विद्यार्थियों का भी दिन है, इस दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की पूजा आराधना भी की जाती है।

बसंत का अर्थ

बसंत ऋतु तथा पंचमी का अर्थ है- शुक्ल पक्ष का पाँचवां दिन अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार यह जनवरी- फ़रवरी तथा हिन्दू पंचाग  तिथि के अनुसार माघ महीने में मनाया जाता है।

वसंत पंचमी उत्सव भारत के पूर्वी क्षेत्र में बड़े उत्साह से मनाया जाता हैं। इसे सरस्वती देवी जयंती के रूप में पूजा जाता हैं। जिसका महत्व  असम तथा पश्चिम बंगाल में अधिक देखने मिलता हैं । बड़े पैमाने पर पुरे देश में सरस्वती पूजा अर्चना एवम दान का आयोजन किया जाता हैं । इस दिन को संगीत एवम विद्या को समर्पित किया गया हैं । माँ सरस्वती सुर एवम विद्या की जननी कही जाती हैं , इसलिये इस दिन वाद्य यंत्रो एवम पुस्तकों का भी पूजन किया जाता हैं ।

बसंत पंचमी में बन रहे है तीन महायोग, इस शुभ मुहूर्त में करें पूजा

शब्दार्थ पर यह विश्वास कवि को कदम-कदम पर जोखिम में डालता है। सफल साहित्यकार इस जोखिम में नहीं पड़ते। वे शब्दों की अर्थवत्ता का मूल्य नहीं चुकाते। सरस्वती के साधक पुत्र यह जोखिम उठाते हैं और शब्दों के अर्थ का मूल्य चुकाते हैं। और वही उनकी शब्द-साधना को मूल्यवान बनाता है। निराला का जीवन मानो इस परीक्षा की अनवरत यात्रा है। उसमें से अनेक से हिंदी समाज परिचित है और अनेक से अभी परिचित होना शेष है। एक उदाहरण मार्मिक तो है ही, मनोरंजक भी है।सरस्वती भाषा की देवी हैं। वाणी हैं। वाणी सामाजिक देवी है। वे शब्दों को सिद्धि कर देती हैं।कवि सरस्वती की साधना करके शब्दों को अर्थ प्रदान करता है। उन्हें सार्थक बनाता है। वस्तुतः शब्द ही कवि की सबसे बड़ी संपत्ति हैं और उसी संपत्ति पर कवि को सबसे अधिक भरोसा होता है। तुलसी ने लिखा था -‘कबिहिं अरथ आखर बल साँचा’ कवि को अर्थ और अक्षर का ही सच्चा बल होता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म वसंत पंचमी को हुआ था । भारतीय वसुंधरा महान प्रतिभाओं की जननी रही है। ऐसे ही एक अद्भुत प्रतिभा का जन्म पंडित रामसहाय त्रिपाठी के घर महिषादल के मेदिनीपुर (बंगाल) में हुआ। रविवार के दिन जन्म होने के कारण पिता ने इन्हें नाम दिया- सूर्यकुमार।

बसंत पंचमी के दिन जरूर करें सरस्वती चालीसा का पाठ

कहते हैं, एक वृद्धा ने घनघोर जाड़े के दिनों में निराला को बेटा कह दिया। वृद्धाएँ प्रायः युवकों को बेटा या बच्चा कहकर संबोधित करती हैं। वह वृद्धा तो निराला को बेटा कहकर चुप हो गई लेकिन कवि निराला के लिए बेटा एक अर्थवान शब्द था। वे इस संबोधन से बेचैन हो उठे। अगर वे इस बुढ़िया के बेटा हैं तो क्या उन्हें इस वृद्धा को अर्थात्‌ अपनी माँ को इस तरह सर्दी में ठिठुरते छोड़़ देना चाहिए। संयोग से उन्हीं दिनों निराला ने अपने लिए एक अच्छी रजाई बनवाई थी। उन्होंने वह रजाई उस बुढ़‍िया को दे दी। यह एक साधारण उदाहरण है कि शब्दों को महत्व देने वाला कवि शब्दार्थ की साधना जीवन में कैसे करता है।

यह साधना केवल शब्द पर ही विश्वास नहीं पैदा करती है अपितु वह आत्मविश्वास भी जगाती है। जिन दिनों निराला इलाहाबाद में थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के यशस्वी वाइस चांसलर अमरनाथ झा भी वहीं थे। शिक्षा, संस्कृति और प्रशासकीय सेवाओं के क्षेत्र में अमरनाथ झा का डंका बजता था। उनका दरबार संस्कृति कर्मियों से भरा रहता था।अमरनाथ झा ने निराला को पत्र लिखकर अपने घर पर काव्य पाठ के लिए निमंत्रित किया। पत्र अंग्रेजी में था। निराला ने उस पत्र का उत्तर अपनी अंग्रेजी में देते हुए लिखा – “आई एम रिच ऑफ माई पुअर इंग्लिश, आई वाज ऑनर्ड बाई योर इनविटेशन टू रिसाइट माई पोयम्स एट योर हाउस। हाउ एवर मोर आनर्ड आई विल फील इफ यू कम टू माई हाउस टू लिसिन टू माई पोयम्स।” (मैं गरीब अंग्रेजी का धनिक हूँ। आपने मुझे अपने घर आकर कविता सुनाने का निमंत्रण दिया मैं गौरवान्वित हुआ। लेकिन मैं और अधिक गौरव का अनुभव करूँगा यदि आप मेरे घर आकर मेरी कविता सुनें)।

बसंत पंचमी पर राशिनुसार करें सरस्वती मंत्र का जाप, होंगे बड़े लाभ

निराला तो कहीं भी, किसी को भी कविता सुना सकते थे लेकिन वे वाइस चांसलर और अपने घर पर दरबार लगाने वाले साहित्य संरक्षक के यहाँ जाकर अपनी कविताएँ नहीं सुनाते थे। यह शब्दार्थ का सम्मान, सरस्वती की साधना का सच्चा रूप था।

कहते हैं, एक बार ओरछा नरेश से अपना परिचय देते हुए निराला ने कहा,’हम वो हैं जिनके बाप-दादों की पालकी आपके बाप-दादा उठाते थे।’ यह कवि की अपनी नहीं बल्कि कवियों की परंपरा की हेकड़ी थी और निराला उस पारंपरिक घटना स्मृति का संकेत कर रहे थे, जब सम्मानित करने के लिए छत्रसाल ने भूषण की पालकी स्वयं उठा ली थी। हिंदी साहित्य में ऐसे कवियों की परंपरा है जिसके श्रेष्ठ वाहक कबीर, तुलसी और सूरदास हैं। रीतिकालीन कवियों में भी अनेक ने यह जोखिम उठाया है। गंग कवि को तो जहाँगीर ने हाथी के पैरों तले कुचलवा ही दिया था।

निराला जैसे कवि के व्यक्तित्व को हम आज के परिदृश्य में कैसे देखें। पहली बात तो मन में यही आती है कि राजनीतिक रूप से स्वतंत्र होने के बाद कितनी तेजी से हम सांस्कृतिक दृष्टि से पराधीन हो गए हैं। यह ऐतिहासिक विडंबना अब अबूझ नहीं रह गई है। साफ दिखलाई पड़ रही है। एक ओर देश के प्रायः सभी सांस्कृतिक मंचों पर अंतर्राष्ट्रीय पूंजीवादी अपसंस्कृति का कब्जा बढ़ता जा रहा है और उससे भी यातनाप्रद स्थिति यह है कि हम उससे उबरने का कोई उद्योग नहीं कर रहे हैं। बाहरी तौर पर देखने से स्थिति बड़ी चमत्कारी और सुखद लगती है।

जिस तरह हम गाँधी की तुलना आज के नेताओं से करने पर विक्षुब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं, उसी तरह आज के हिंदी साहित्यकारों की तुलना निराला से करने पर हम विक्षुब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं

Tags: "Vasant panchamiBasant Panchamibasant panchami 2022
Previous Post

कनौजी ददुआ की बतकही

Next Post

30 सालों से भाजपा का अजेय गढ़ है वाराणसी का कैंट विधानसभा

Writer D

Writer D

Related Posts

Nail Art
फैशन/शैली

नेल आर्ट किट में शामिल करें ये चीजें, घर में ही मिलेगा पार्लर जैसा स्टाइल

06/07/2025
Glowing Skin
Main Slider

खूबसूरती को बढ़ाएगा ये फूल, मिलेगा निखार

06/07/2025
Coconut Oil
फैशन/शैली

पार्टी से पहले मिनटों में बढ़ाए चेहरे का निखार, आजमाए यह फेसपैक

06/07/2025
Coconut Oil
फैशन/शैली

इन चीजों से निखरेगा स्किन, इस तरह करें यूज

06/07/2025
Henna
फैशन/शैली

बालों में पहली बार लगा रही है मेहंदी, जानें लगाने का सही तरीका

06/07/2025
Next Post

30 सालों से भाजपा का अजेय गढ़ है वाराणसी का कैंट विधानसभा

यह भी पढ़ें

CM Yogi performed Rudrabhishek on Mahashivratri

महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक कर सीएम योगी ने की लोकमंगल की प्रार्थना

26/02/2025
CM Vishnudev Sai

2026 तक नक्सलवाद का होगा संपूर्ण खात्मा: CM विष्णुदेव साय

01/03/2025
arrested

अन्तर्राज्यीय तस्कर आर्यन त्यागी गिरफ्तार, अवैध हथियार बरामद

14/06/2023
Facebook Twitter Youtube

© 2022 24घंटेऑनलाइन

  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म

© 2022 24घंटेऑनलाइन

Go to mobile version