नई दिल्ली. राजद्रोह कानून को औपनिवेशिक कानून बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि आजादी के 75 साल बाद भी देश में इस कानून की क्या जरूरत है। ये अधिकारियों को कानून के गलत इस्तेमाल की बड़ी ताकत देता है।
चीफ जस्टिस एनवी रमना की तीन जजों वाली बेंच ने गुरुवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देश में राजद्रोह कानून के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की। सीजेआई एनवी रमना ने भी विरोध को रोकने के लिए कथित तौर पर 1870 में औपनिवेशिक युग के दौरान डाले गए प्रावधान (आईपीसी की धारा 124 ए) के उपयोग को जारी रखने पर आपत्ति व्यक्त की।
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गांधीजी को दबाने के लिए इस कानून इस्तेमाल हुआ था
सीजेआई ने आईपीसी की धारा 124 ए को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी करते हुए कहा, “कानून के बारे में इस विवाद का संबंध है, यह औपनिवेशिक कानून है। यह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए था, उसी कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी, तिलक आदि को चुप कराने के लिए किया था। आजादी के 75 साल बाद भी क्या यह जरूरी है?” उन्होंने संकेत दिया कि आज़ादी के 75 साल बाद भी इस तरह के कानूनों को जारी रखना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा, “सरकार कई कानून हटा रही है, मुझे नहीं पता कि वे इस पर गौर क्यों नहीं कर रहे हैं।”
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IT एक्ट की धारा 66A अभी भी जारी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम किसी राज्य सरकार या केंद्र सरकार पर आरोप नहीं लगा रहे हैं, लेकिन देखिए कि IT एक्ट की धारा 66A का अभी भी इस्तेमाल किया जा रहा है। कितने ही दुर्भाग्यशाली लोग परेशान हो रहे हैं और इसके लिए किसी की भी जवाबदेही तय नहीं की गई है। जहां तक सेडिशन लॉ की बात है तो इसका इतिहास बताता है कि इसके तहत दोष तय होने की दर बहुत कम है।
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कानून पर अटॉर्नी जनरल का जवाब
केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल ने जवाब देते हुये कि इस कानून को खत्म किए जाने की जरूरत नहीं है। केवल गाइडलाइन तय की जानी चाहिए, ताकि ये कानून अपना मकसद पूरा कर सके। इस पर अदालत ने कहा कि अगर कोई किसी दूसरे की बात नहीं सुनना चाहता है तो वह इस कानून का इस्तेमाल दूसरे को फंसाने के लिए किया जा सकता है और यह किसी व्यक्ति के लिए बहुत बड़ा गंभीर सवाल है।
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क्या है राजद्रोह कानून?
IPC में धारा 124 A में राजद्रोह की परिभाषा दी गई है। इसके मुताबिक, अगर कोई भी व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ लिखता है या बोलता है या फिर ऐसी बातों का समर्थन भी करता है, तो उसे उम्रकैद या तीन साल की सजा हो सकती है।