राजेशकुमारसिंह “श्रेयस”
जाड़ा रजाई मे घुसने की भरपूर कोशिश कर रहा था और रजेशर उसको रोकने के सारे यत्न किये जा रहा था l घुटनो को नाक तक ले जाने से लेकर, रजाई को लपेट लेने तक की पूरी कोशिश जारी थीl आसमान के सारे तारे मैदान छोड़ कर भाग गए थेl सिर्फ शुकउआ [शुक्र तारा] सुबह होने का इंतजार कर रहा था l
चरर मरर चरर मरर रर्रर्रर्रर्र की आवाज के साथ रजेशर की नींद खुल गईl गन्ने के कोल्हू से निकली यह आवाज हर रोज रजेशर को जगा देतीl जुग्गन काका और माही बो काकी गन्ने की पैराई करने हर रोज सुबह देवनंदन बाबू के कोल्हाड़े आ जाते थेl रजेशर के दोनों बैल गन्ने के कोल्हू के चारो और लगातार चक्कर लगा रहे थे l करीब एक कराहा गन्ने का रस आधा माधा खौल कर खदकने ही वाला था l कराहे से बरध महिया को काछती, माही बो काकी को देख कर रजेशर अनायास बोल पड़ा,..काकी! सुगनी के का हाल चाल बा? बाबू ठीके बा, परसोईयें ससुरा से आइल हउवे l यह कह कर माही बो काकी सुबुकते हुए, अपने पल्लू से आँखों के आँशु को पोछने लगी l
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रजेशर को सब कुछ अच्छा नही होने का पूरा अंदेशा हो गया थाl उसने माही बो काकी को जब बार बार कुरैदा तो माही बो काकी के दिल का दर्द उभर आयाl काकी ने रजेशर से सारी बातें बता दींl
सुगनी की शादी बचपन मे ही हो गई थीl बड़ी मुश्किल से शादी के दिन वह शादी के मंडप मे बैठ पाई थी, और आखिरकार शादी की दो तीन रस्म मे बाद वह सो भी गई थीl दस बारह साल बाद उसका गौना हुआ था और वह ससुराल चली गई थीl मुश्किल से छः सात महीने वह ससुराल मे रह पाई थी l कल ही उसका पति उसे घर लेकर आया था l आते वक्त सुगनी के ससुर ने साफ साफ बोल दिया था, कि अगली बार यदि बिना साइकिल के आई तो तुम्हें घर में घुसने नही दिया जाएगाl
रजेशर देवनंदन बाबू का एकलौता बेटा थाl जमींदार का बेटा होने के बावजूद भी उसके दिल मे गरीब, और मेहनतकश मजदूर के लिए बहुत जगह थी l
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आज सुबह सुबह रजेशर, माही बो काकी के घर अपनी चौबीस इंच की साइकिल से पहुंच गया था l रजेशर बाबू को घर पर आया देख, सभी भोचक्के से हो गए थेl काकी ने बड़े प्यार से रजेशर को खटिया पर बैठाया, नास्ता पानी के लिए डालिये मे भेली का टुकड़ा और एक गिलास ठंडा पानी भी दिया l
माही बो काकी ने रजेशर बाबू से सुबह सुबह घर आने का कारण पूछाl रजेशर ने जबाब मे बस इतना ही कहा कि वह पाहुन से मिलने चला आया थाl कुछ देर रुकने के बाद, रजेशर पैदल ही घर की तरफ जाने लगा l अचानक सुघरी बोल पड़ी,.. ए माई! रजेशर भईया से बोल दो कि साईकिलिया तो लेते जायँ, शायद वे साइकिल को ले जाना भूल गए हैंl
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रजेशर यह सब बात सुन रहा थाl अचानक पीछे मुड़कर, रजेशर ने जान बुझकर तेज आवाज बोला ताकि सुघरी का पति भी सुन ले ,..ए काकी! पाहुन से बोल देना कि अब साइकिल को वे लेते जायेगे, लेकिन आज के बाद सुघरी से यह कोई नही कहेगा कि बिना साइकिल लाये वह ससुराल नही आएगीl