नई दिल्ली। हाथरस कांड पर मंगलवार को योगी सरकार और हाथरस जिला प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा है। हाथरस जिला प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एफिडेविट में दाखिल किया है। सुप्रीम कोर्ट में हाथरस दुष्कर्म और हत्या की सीबीआई या एसआईटी से जांच कराने की मांग की जनहित याचिका पर सुनवाई थी।
यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार रात (29 सितंबर) में मृत युवती के अंतिम संस्कार करने के मामले पर अपनी सफाई दी है। हाथरस जिला प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एफिडेविट में दावा किया है कि जिला को बड़ी हिंसा से बचाने के लिए मृत युवती के माता-पिता को रात में अंतिम संस्कार करने के लिए मना लिया। जिला प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया कि खुफिया रिपोर्ट मिली थी कि वहां पर लाखों लोग एकत्र होंगे, जिससे बड़े बवाल की संभावना थी। यह लोग वहां पर इस प्रकरण को जाति के साथ सांप्रदायिक रंग दे सकते थे।
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योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह हाथरस केस की सीबीआई जांच की निगरानी करें। यूपी सरकार ने कोर्ट को बताया कि हाथरस मामले के बहाने सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर यूपी सरकार को बदनाम करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है।
हाथरस के बूलगढ़ी गांव में 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित लड़की के साथ कथित तौर पर चार पुरुषों से सामूहिक दुष्कर्म के बाद जमकर पीटा था। इस दौरान उसकी हत्या करने की कोशिश की गई। हाथरस से पीड़िता को अलीगढ़ के मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था, जहां से 28 सितंबर को उसको दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया। 29 सितंबर को इलाज के दौरान पीड़िता की मृत्यु हो गई थी।
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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सामाजिक कार्यकर्ता सत्यम दुबे और दो वकील विशाल ठाकरे और रुद्र प्रताप यादव की याचिका पर सुनवाई की। इस याचिका में उत्तर प्रदेश के अधिकारियों द्वारा मामले से निपटने में विफलता का आरोप लगाया गया है। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने की। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि महिला और उसके परिवार के साथ घोर अन्याय हुआ है। पीड़िता की लाश को पुलिस ने परिवारवालों की सहमति के बिना जलाया था।
पुलिस अधिकारियों ने पीड़ित परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया है और आरोपी व्यक्तियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। पीड़िता के साथ घोर अन्याय किया गया था और प्रशासन इस मुद्दे पर चुप है। याचिकाकर्ताओं ने केस को यूपी से दिल्ली स्थानांतरित करने की भी मांग की। याचिकाकर्ताओं ने अनुरोध किया कि मामले को केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंपने की संस्तुति की गई है।