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केजरीवाल का सतही आचरण

Writer D by Writer D
18/12/2020
in Main Slider, ख़ास खबर, राजनीति, राष्ट्रीय, विचार
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arvind kejriwal

arvind kejriwal

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दिल्ली के अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों  की प्रतियां फाड़ दी। इससे पता चलता है कि वे आज भी राजनीतिक रूप से परिपक्व नेता नहीं बन पाए हैं। कोई भी गंभीर प्रवृत्ति का नेता इस तरह के सतही आचरण नहीं करता। उन्होंने कहा है कि वे देश के किसानों के साथ छल नहीं कर सकते और इसके प्रमाण के तौर पर उन्होंने तीनों केंद्रीय कानूनों के सापेक्ष विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया है।

इस तरह का आचरण वे मुख्यमंत्री बनने के शुरुआती दौर में भी करते रहे हैं। मुख्यमंत्री रहते सड़क पर धरने पर बैठ गए थे। कुछ उसी तरह का प्रयोग वे आज भी कर रहे हैं। तब जनता ने उन्हें राजनीति का नौसिखिया खिलाड़ी माना था लेकिन अब उनसे इसतरह के आचरण की अपेक्षा यह देश हरगिज नहीं करता। दिल्ली विधानसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा है कि तीन कृषि कानून लाने के पीछे भाजपा का मकसद केवल चुनावी फंडिंग है और यह किसानों के लिए नहीं है। उन्होंने केंद्र सरकार को मुगालते में न रहनेकी नसीहत भी दी है। साथ ही यह भी कहा है कि किसान यहांसे अपने घर जाने वाले नहीं है।

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एक ओर तो वे आंदोलनकारी किसानों की मौत का मातम मना रहे हैं और दूसरी ओर उन्हें ठंड में आंदोलन के मैदान में बने रहने के लिए उकसा भी रहे हैं। वे वर्ष 1907 के नौ महीनों तक चले किसान आंदोलन की याद भी दिला रहे हैं और यह भी बता रहे हैं कि जब तक ब्रिटिश शासकों ने कुछ कानूनों को निरस्त नहीं कर दिया तब तक किसानों ने अपना आंदोलन नहीं छोड़ा। उन्हें सोचना चाहिए कि अंग्रेज विदेशी थे लेकिन भारत सरकार विदेशी नहीं है। वह इस देश के लोगों द्वारा बहुमत से चुनी गई सरकार है। जब केजरीवाल यह सवाल करते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज बेचने के लिए देश में कहां जानाचाहिए तो उनकी सोचपर कोफ्त होता है। क्या दिल्ली केमुख्यमंत्री इतनी भी गारंटी नहीं ले सकते कि उनके राज्य में किसानों को उनके उत्पादों की उचित कीमत मिलेगी। और भी जिस किसी राज्य के मुखिया न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानून का विषय बनाने की मांग कर रहे हैं।

उनके आत्मविश्वास पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है। जो मुख्यमंत्री  अपने राज्य में किसानों के हितों की रक्षा नहींकर पा रहे हैं, उन्हें  किसानों को बरगलाने का कोई अधिकार नहीं है। केंद्र सरकार अगर बार-बार यह कह रही है कि इल्हीं सुधारोंकी बदौलत वह देश में किसानों को खुशहाल बनाएगी तो उस पर कुछ तो भरोसा किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री किसान सम्मेलनों के जरिए उन्हें यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि इसमें उनकी खेती हड़पने, मंडियों को समाप्त करने, एमएसपी कानून को खत्म करने जैसा कोई प्रावधान नहीं है। अनुबंधात्मक खेती  में फसल का अनुबंधहोता है न कि खेती का। इसलिए डरने की जरूरत नहीं है। कुछ राजनीतिक दल इस बात का दावा कर रहे हैं कि उनकी पार्टी के ज्यादातर कार्यकर्ता किसान हैं। उनकी बात सही हो सकती है। कुछ हद तक सही है भी लेकिन प्रापर्टी डीलिंग से जुड़े लोग भी तो जमीन से जुड़े हैं।

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पंजाब के बड़े आढ़तियो में सुखवीर सिंह बादल के नाम की भी गणना होती है। अगर हर राजनेता अपने राज्य, जिले में यह सुनिश्चित करा दे कि किसानों का अनाज न्यूनतम समर्थन मूल्यसे कम पर नहीं खरीदा जाएगा तो किसकी मलाल है जो किसानों को सुखी होने से रोक दे। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जितनी ऊर्जा आंदोलन को सफल बनाने में लाई, उतनी ऊर्जा अर वे किसानों की बेहतरी पर लाते तो राम सिंह जैसे संत को आत्महत्या न करनी पड़ती। इस आंदोलन से देशको कितना नुकसान हो रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन इसके बाद भी दिल्ली सरकार माहौल शांत करने की बजाय किसानों के आक्रोश के पलीते में माचिस  जलाने का काम कर रही है।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों से आग्रह किया कि वे राजनीतिक स्वार्थ के लिए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ फैलाये जा रहे भ्रम से बचें।

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उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार और किसानों के बीच झूठ की दीवार खड़ी करने की साजिश रची जा रही है। किसानों के नाम लिखे एक पत्र में तोमर ने दावा किया कि तीन कृषि सुधार कानून भारतीय कृषि में नये अध्याय की नींव बनेंगे, किसानों को और स्वतंत्र तथा सशक्त करेंगे। इन सुधारों को लेकर उनकी अनेक राज्यों के किसान संगठनों से बातचीत हुई है और कई किसान संगठनों ने इनका स्वागत किया है। इसमें शक नहीं कि नए कानून लागू होने के बाद इस बार खरीद के लिए पिछले रिकॉर्ड टूट गए हैं। सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के नए रिकॉर्ड बनाए हैं और वह खरीद केंद्रों की संख्या भी बढ़ा रही है।

बीते 5 वर्षों में कृषि मंडियों को आधुनिक बनाने के लिए सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च किए हैं। किसानों की हर शंका आशंका को दूर करना, उसका उत्तर देना केंद्र सरकार अपना दायित्वसमझ रही है और वह निरंतर संपर्क-संवाद भी स्थापित कर रही है। इसके बाद भी उसकी नीयत पर सवाल उठाना कितना न्यायसंगत है। सर्वोच्च न्यायालय भी इस आंदोलन को लेकर चिंतित है। वह समिति बनाने की बात कर रहाहै। किसानों के साथ अन्याय न हो, यह सबकी मंशाहै लेकिन किसानों को भी इस बावत विचार करना होगा।

गंभीर प्रव्त्तिके नेताओं की बात सुनने से बेहतर होगा कि वह अपने मन की सुने और विचार कर वह निर्णयले जो उसके लिएहितकारी हो। जिस केजरीवाल ने कोरोनाकाल मेंमजदूरों को असहाय छोड़ दिया। जिसने बाहरी और भीतरी का मुदछा उठाया, उसकी बातों पर देशका किसान कितना विश्वास करे।

Tags: Arvind Kejriwaldelhi newsfarmer protestKisan andolanNational news
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