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जानिए कैसे पड़ा दशानन का नाम रावण, क्या है तांडव स्त्रोत की रचना

Desk by Desk
17/12/2020
in Main Slider, ख़ास खबर, धर्म, फैशन/शैली
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story of shiv tandav stotram

story of shiv tandav stotram

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धर्म डेस्क। भगवान शिव की आराधना व उपासना के लिए  कई स्त्रोतों की रचना की गई है। उन सभी अन्य स्तोत्रों में शिवतांडव स्तोत्र भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है। धार्मिक मान्यता के अनुसार शिवतांडव स्तोत्र द्वारा जो भी भगवान शिव की स्तुति सच्चे मन से करता है, उसे कभी भी धन-सम्पति की कमी नहीं होती है। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने के भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र दशानन के द्वारा रचित है। भगवान शिव के द्वारा ही दशानन का नाम रावण रखा गया। तो चलिए जानते हैं कि कैसे हुई शिव तांडव स्त्रोत की रचना…

शिव तांडव स्त्रोत की पौराणिक कथा

रावण के पिता का नाम विश्रवा था जोकि एक ऋषि थे। रावण के सौतेले भाई कुबेर थे।  पहले सोने की लंका का राज्य ऋषि विश्रवा ने कुबेर को दिया था, लेकिन किसी कारणवश अपने पिता के कहने पर वे लंका का त्याग कर हिमाचल चले गए। कुबेर के चले जाने के बाद सोने की लंका दशानन मिल गई और वह लंका का अधिपति बन गया। जैसे ही दशानन को लंका का राज्य प्राप्त हुआ उसके भीतर अहंकार  उत्पन्न हो गया। धीरे-धीरे वह इतना अहंकारी हो गया कि उसने साधु संतो पर अनेक प्रकार के अत्याचार करना आरंभ कर दिया।

दशानन के अत्याचारों बारे में जब उसके भाई कुबेर को ज्ञात हुआ तो उन्होंने दशानन को समझाने के लिए अपना एक दूत भेजा। उस  दूत ने  कुबेर के कहे अनुसार दशानन को सत्य पथ पर चलने की सलाह दी। कुबेर की सलाह सुन दशानन क्रोधित हो गया और अहंकार एवं क्रोध में आकर उसने उस दूत को बंदी बना लिया और उसी समय उसने अपनी तलवार से उस दूत की हत्या कर दी।

दूत की हत्या करने के पश्चात भी दशानन का क्रोध शांत नहीं हुआ क्रोध में वह कुबेर की नगरी अलकापुरी पर आक्रमण के लिए निकल पड़ा और कुबेर की नगरी को तहस-नहस कर दिया उसके बाद अपने भाई कुबेर पर भी उसने गदा का प्रहार किया। जिससे कुबेर घायल हो गए। कुबेर के सेनापतियों ने किसी तरह से कुबेर को नंदनवन पहुँचा दिया जहाँ वैद्यों ने उनका उपचार किया जिससे वे स्वस्थ हो गए।

दशानन ने कुबेर की नगरी व उसके पुष्पक विमान दोनों पर भी अपना अधिकार कर लिया। पुष्पक विमान की ये विशेषता थी कि वह चालक की इच्छानुसार चलता था तथा उसकी गति मन की गति से भी तेज थी, एक दिन दशानन पुष्पक विमान में सवार होकर शारवन की तरफ चल पड़ा, परंतु एक पर्वत के पास से गुजरते हुए उसके पुष्पक विमान की गति स्वयं ही धीमी हो गई। पुष्पक विमान की गति मंद हो जाने पर दशानन को  बहुत आश्चर्य हुआ।

तभी अचानक उसकी दृष्टि सामने खड़े विशाल शरीर वाले नंदीश्वर पर पड़ी। नंदीश्वर ने दशानन को चेताते हुए कहा कि यहाँ भगवान शंकर क्रीड़ा में मग्न हैं इसलिए तुम वापस लौट जाओ, लेकिन कुबेर पर विजय पाकर दशानन अत्यंत दंभी हो गया था। उसने नंदी की बात नहीं सुनी और अहंकार में कहने लगा कि कौन है ये शंकर और किस अधिकार से वह यहाँ क्रीड़ा करता है? मैं उस पर्वत का नामो-निशान ही मिटा दूँगा, जिसके कारण मेरे विमान की गति अवरूद्ध हुई है।

इतना कहते हुए उसने पर्वत की नींव पर हाथ लगाकर उसे उठाना चाहा। जैसे ही दशानन नें पर्वत कि नींव को उठाने की कोशिश की भगवान शिव ने वहीं बैठे-बैठे अपने पाँव के अंगूठे से उस पर्वत को दबा दिया ताकि वह स्थिर हो जाए। भगवान शंकर के ऐसा करने से दशानन की बाँहें उस पर्वत के नीचे दब गई। जिससे दशानन को बहुत  पीड़ा होने लगी। क्रोध और पीड़ा के कारण दशानन ने भीषण चीत्कार कर उठा। उसकी चित्कार इतनी तेज थी कि ऐसा लगने लगा जैसे मानो प्रलय आ जाएगी।

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