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देर से आया सही विचार

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सियाराम पांडे ‘शांत’

पेट्रोल-डीजल की कीमतों का  आसमान छूना जनता के लिए तो  परेशानी का सबब है ही, बल्कि इससे  भी ज्यादा संकट में सरकार फंस गई है। उसे चैतरफा विरोध का सामना करना पड़ रहा है। डीजल और पेट्रोल की बढ़ती कीमते आवश्यक वस्तुओं के दाम पर भी असर डाल रही हैं।  विपक्ष निरंतर केंद्र सरकार पर दबाव डाल रहा है कि वह पेट्रोल और डीजल की कीमतों की जीएसटी के दायरे में लाए। देर सवेर ही सही, केंद्र सरकार को भी लगने लगा है कि ऐसा किए बिना काम नहीं चलने वाला। केंद्रीय  वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण  और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान  ने इसके संकेत भी दिए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि केंद्र सरकार की जीएसटी की चार दरों में से किसे वरीयता देगी?

अगर वहां सबसे महंगी दर भी निर्धारित करती है तो भी देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें  आधी हो जाएंगी। सबसे छोटी दर को तजीह देगी तो फिर उपभेक्ताओं की बल्ले-बल्ले हो जाएगी। वैसे भी भारत के पड़ोसी देशों में भारत के मुकाबले डीजल और  पेट्रोल  के दाम बेहद कम है, सरकार को पहले ही इस स्थिति पर विचार करना चाहिए था।  अभी दिल्ली में पेट्रोल 90.11 रुपये और डीजल 81.32 रुपये लीटर बिक रहा है। इस पर केंद्र ने क्रमशः 32.98 रुपए लीटर और 31.83 रुपए लीटर का उत्पाद शुल्क लगाया है। यह तब है जबकि देश में जीएसटी लागू है. जीएसटी को 1 जुलाई, 2017 को पेश किया गया था। तब राज्यों की उच्च निर्भरता के कारण पेट्रोल और डीजल को इससे बाहर रखा गया था। अब सीतारमण ने ईंधन की कीमतें नीचे लाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक संयुक्त सहयोग का आह्वान किया है।

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देर आयद-दुरुस्त आयद। जब जागे तभी सवेरा। सरकार के पास आर्थिक संसंसाधन जुटाने के अनेक तरीके हैं। डीजल और पेट्रोल को जीएटी के दाये में लाकर वह बढ़ती महंगाई को भी विराम लगा सकती है और  अपने विरोधियों का मुंह भी बंद कर सकती है। वर्तमान में, भारत में चार प्राथमिक जीएसटी दर हैं – 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत, जबकि केंद्र व राज्य सरकारें उत्पाद शुल्क व वैट के नाम पर 100 प्रतिशत से ज्यादा टैक्स वसूल रही हैं। दिल्ली में जो  पेट्रोल  31-32 रुपये में बिकना चाहिए, वही  90 रुपये 11 पैसे में बिक रहा है। इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहा जाएगा। राजस्थान के श्रीगंगानगर में पेट्रोल के दाम सौ रुपये के भी पार हो गए हैं। कांग्रेस देश भर में डीजल और पेट्रोल की बढ़ती कीमतों पर केंद्र सकार को घेर रही है लेकिन उसके अपने राज्यों में क्या हो रहा है, इसे वह देखना तक मुनासिब नहीं समझती। राजस्थान के ही अलवर जिले में  एक जनवरी से 20 फरवरी तक सरकार ने 26 बार पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ाए हैं।

जिससे अकेले अलवर जिले के पंप मालिकों को 2 करोड़ 66 लाख रुपए सिर्फ स्टॉक के तेल पर बचे हैं। कमीशन तो अलग है ही। जिले में 188 पेट्रोल पंप हैं। जिन पर हर समय करीब  40 लाख 96 हजार लीटर पेट्रोल व डीजल का स्टॉक रहता है। जैसे ही भाव बढ़ते हैं तो यह तेल बढ़े हुए भावों में बिकता है। जबकि खरीद पुराने भाव की रहती है। पेट्रोलियम पदार्थों के लगातार मूल्य वृद्धि को लेकर विपक्षी दलों के विरोध प्रदर्शन का दौर जारी है। इस क्रम में बुधवार को चंदौली जिले में आम आदमी पार्टी ने भी विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान प्रदर्शन का एक अनोखा तरीका देखने को मिला। एक तरफ जहां कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खून से पत्र लिखकर बढ़ते डीजल पेट्रोल और रसोई गैस के दाम कम करने की गुहार लगाई तो वहीं कुछ कार्यकर्ता ग्लूकोज की बोतल की तरह खून की बोतल लटकाकर पेट्रोल खरीदने पंप पहुंच गए। कार्यकर्ताओं ने कहा कि केंद्र सरकार बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाए।

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आम जनता इसका जवाब चुनाव में जरूर देगी। पेट्रोल और डीजल का विरोध भी नए-नए कलेवर में सामने आ रहा है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश विधानसभा के बजट सत्र में भाग लेने के लिए कांग्रेस विधायक साइकिल पर सवार होकर विधानसभा आए। विभिन्न राजनीतिक दल बैलगाड़ी की सवारी करते नजर आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता एक पेट्रोल पंप पर पहुंचे और वहां अपने खून से बढ़ते पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य वृद्धि पर लगाम लगाने के लिए पीएम मोदी को पत्र लिखा है। वहीं सकलडीहा क्षेत्र में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता पेट्रोल पंप पर खून के बदले पेट्रोल लेने पहुंच गए। किसानों के आंदोलन से केंद्र सरकार पहले ही परेशान है और अब  पेट्रोल – डीजल को लेकर भी उसकी आलोचना हो रही है। ऐसे में उसकी पेशानियों पर बल पड़ना स्वाभाविक है।

पिछले दिनों प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने  पेट्रोल – डीजल के दाम बढ़ने के लिए पूर्व सरकारों की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया था लेकिन यह दलील लोगों को कुछ खास समझ में नहीं आई थी। पिछली सरकारों ने क्या किया, यह उतना मायने नहीं रखता जितना यह कि मौजूदा सरकार क्या कर रही है। कोई भी जनादेश बदलाव के लिए होता है। सरकार बदलाव नहीं कर पा रही है तो आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है, विचार तो इस पर भी किया जाना चाहिए। इस पर कुछ बौद्धिक लोग मनमाने तर्क भी देने लगे हैं।  पेट्रोल -डीजल के दाम को सही ठहराने में जुट गए हैं। ऐसे लोगों को देशवासियों की परेशानी को भी समझना चाहिए। कोरोना की चुनौती से पहले ही इस देश के लोग कराह रहे हैं। उनकी दुखती कमर महंगाई की एक और लाठी मारना आखिर कहां तक उचित है।

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उत्तर प्रदेश सरकार ने जहां डीजल पेट्रोल राज्य का कर घटाने से इनकार किया है। वहीं पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अमेरिका में भारी हिमपात को डीजल-पेट्रोल के बढ़ते दाम के लिए जिम्मेदार ठहराया है। डीजल-पेट्रोल के दाम पर राज्य के कर से समझौता कोई भी सत्तारूढ़ दल नहीं करना चाहता, लेकिन इसके बाद भी बहाने का जो खेल चल रहा है उस पर अविलंब रोक लगाने की जरूरत है। जनहित को सर्वोपरि मानते हुए किया गया निर्णय ही देश और प्रदेश का भला कर सकता है।

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