नयी दिल्ली। भारत रत्न से अलंकृत मूर्धन्य विद्वान पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का लंबी बीमारी के बाद सोमवार शाम को निधन हो गया।
पूर्व राष्ट्रपति के पुत्र एवं पूर्व सांसद अभिजीत मुखर्जी ने ट्वीट करके यह जानकारी दी। वह 84 वर्ष के थे। उनके परिवार में दो पुत्र और एक पुत्री हैं। उनकी पत्नी शुभा मुखर्जी का पहले ही निधन हो चुका है।
केन्द्र सरकार ने श्री मुखर्जी के सम्मान में सात दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। इस दौरान कोई भी सरकारी समारोह आयोजित नहीं किया जाएगा और राष्ट्रध्वज आधा झुका रहेगा।
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पूर्व राष्ट्रपति 21 दिनों से सेना के रिसर्च एंड रेफेरल अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें 10 अगस्त को मस्तिष्क में खून के थक्के जमने की जांच के दौरान कोरोना संक्रमित पाया गया था। खून के थक्कों को हटाने के लिए उनकी आपातकालीन जीवनरक्षक सर्जरी की गई थी। सर्जरी के बावजूद उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी और उन्हें गहरी नीमबेहोशी की हालत में वेंटिलेटर पर रखा गया था।
श्री मुखर्जी के निधन का समाचार मिलते ही देश में शोक की लहर दौड़ गयी। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत विभिन्न राजनेताओं ने श्री मुखर्जी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए देश के लिए अपूरणीय क्षति करार दिया।
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श्री मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले के किरनाहर के निकट मिराती गांव के श्री कामदा किंकर मुखर्जी और श्रीमती राजलक्ष्मी मुखर्जी के यहां एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता 1920 से कांग्रेस पार्टी में सक्रिय होने के साथ पश्चिम बंगाल विधान परिषद में 1952 से 1964 तक सदस्य और वीरभूमि जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके थे। उनके पिता एक सम्मानित स्वतन्त्रता सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन की खिलाफत के परिणामस्वरूप 10 वर्षों से अधिक जेल की सजा भी काटी थी।
श्री मुखर्जी ने वीरभूमि के सूरी विद्यासागर कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर और कानून की डिग्री प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने डी लिट की मानद उपाधि भी हासिल की। उन्होंने पहले एक कॉलेज प्राध्यापक के रूप में और बाद में एक पत्रकार के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। वह बांग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक (मातृभूमि की पुकार) में भी काम कर चुके हैं। प्रणव मुखर्जी बंगीय साहित्य परिषद के ट्रस्टी एवं अखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे।
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श्री मुखर्जी का संसदीय कैरियर करीब पांच दशक तक चला, जो 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रूप में (उच्च सदन) से शुरू हुआ था। वह 1975, 1981, 1993 और 1999 में फिर से चुने गये। 1973 में वे औद्योगिक विकास विभाग के केंद्रीय उपमंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में शामिल हुए।
श्री मुखर्जी 1982 से 1984 तक कई कैबिनेट पदों के लिए चुने जाते रहे और 1984 में भारत के वित्त मंत्री बने। वर्ष 1984 में यूरोमनी पत्रिका के एक सर्वेक्षण में उनका विश्व के सबसे अच्छे वित्त मंत्री के रूप में मूल्यांकन किया गया। उनका कार्यकाल भारत के अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के ऋण की 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर की आखिरी किस्त नहीं अदा कर पाने के लिए उल्लेखनीय रहा।
वित्त मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। उन्हें इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। कुछ समय के लिए उन्हें कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया। उस दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक दल राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया, लेकिन 1989 में राजीव गांधी के साथ समझौता होने के बाद उन्होंने अपने दल का कांग्रेस पार्टी में विलय कर दिया। उनका राजनीतिक कैरियर उस समय पुनर्जीवित हो उठा, जब पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव ने पहले उन्हें योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में और बाद में एक केन्द्रीय मंत्री के तौर पर नियुक्त करने का फैसला किया। उन्होंने श्री राव के मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक पहली बार विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया। 1997 में उन्हें उत्कृष्ट सांसद चुना गया।
वर्ष 1985 के बाद से वह कांग्रेस की पश्चिम बंगाल राज्य इकाई के भी अध्यक्ष रहे। वर्ष 2004 में, जब कांग्रेस ने गठबन्धन सरकार के अगुआ के रूप में सरकार बनायी, तो कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सिर्फ एक राज्यसभा सांसद थे। इसलिए जंगीपुर (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से पहली बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले प्रणव मुखर्जी को लोकसभा में सदन का नेता बनाया गया। उन्हें रक्षा, वित्त, विदेश मंत्रालय, राजस्व, नौवहन, परिवहन, संचार, आर्थिक मामले, वाणिज्य और उद्योग, समेत विभिन्न महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्री होने का गौरव भी हासिल हुआ।
वह कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधायक दल के नेता रह चुके हैं, जिसमें देश के सभी कांग्रेस सांसद और विधायक शामिल होते हैं। इसके अतिरिक्त वे लोकसभा में सदन के नेता, बंगाल प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मंत्रिपरिषद में केन्द्रीय वित्त मंत्री भी रहे।
लोकसभा चुनावों से पहले जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी बाई-पास सर्जरी कराई, प्रणव दा विदेश मंत्रालय में केन्द्रीय मंत्री होने के बावजूद राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति के अध्यक्ष और वित्त मंत्रालय में केन्द्रीय मंत्री का अतिरिक्त प्रभार लेकर मंत्रिमंडल के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में करीब पांच दशक के लंबे राजनीतिक करियर के बाद वह भारत के तेरहवें राष्ट्रपति रहे।
वर्ष 2012 में तत्कालीन केन्द्रीय वित्त मंत्री श्री मुखर्जी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया था। सीधे मुकाबले में उन्होंने अपने प्रतिपक्षी प्रत्याशी पी.ए. संगमा को हराया था। उन्होंने 25 जुलाई 2012 को भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली थी। पांच साल इस पद पर रहने के बाद वह 2017 में सेवानिवृत्त हुए थे।
प्रणब मुखर्जी ने किताब ‘द कोलिएशन ईयर्स: 1996-2012’ नामक एक किताब भी लिखी है। सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें 26 जनवरी 2019 को भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।