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‘हिंदुस्तान हिन्दू राष्ट्र है’ के उच्चारण के पीछे कोई राजनीतिक व सत्ता केंद्रित संकल्पना नहीं : मोहन भागवत

Desk by Desk
25/10/2020
in Main Slider, ख़ास खबर, धर्म, महाराष्ट्र, राजनीति, राष्ट्रीय
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मोहन भागवत Mohan Bhagwat

मोहन भागवत

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नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत रविवार को नागपुर स्थित मुख्यालय के महर्षि व्यास सभागार में वार्षिक दशहरा समारोह में भाग लिया। इस मौके पर संघ प्रमुख ने कहा कि हमारी सेना की अटूट देशभक्ति व अदम्य वीरता, हमारे शासनकर्ताओं का स्वाभिमानी रवैया तथा हम सब भारत के लोगों के दुर्दम्य नीति-धैर्य का परिचय चीन को पहली बार मिला है।

मोहन भागवत ने कहा कि ‘हिन्दू’ किसी पंथ, सम्प्रदाय का नाम नहीं है। यह किसी एक प्रांत का अपना उपजाया हुआ शब्द नहीं है। साथ ही यह किसी एक जाति की बपौती नहीं है। किसी एक भाषा का पुरस्कार करने वाला शब्द नहीं है। वह इन सब विशिष्ट पहचानों को कायम, स्वीकृत व सम्मानित रखते हुए, भारत भक्ति के तथा मनुष्यता की संस्कृति के विशाल प्रांगण में सबको बसाने वाला, सब को जोड़ने वाला शब्द है।

उन्होंने कहा कि देश की एकात्मता के व सुरक्षा के हित में ‘हिन्दू’ शब्द को आग्रहपूर्वक अपनाकर, उसके स्थानीय तथा वैश्विक, सभी अर्थों को कल्पना में समेटकर संघ चलता है। संघ जब ‘हिन्दुस्थान हिन्दू राष्ट्र है’ इस बात का उच्चारण करता है तो उसके पीछे कोई राजनीतिक अथवा सत्ता केंद्रित संकल्पना नहीं होती।

मोहन भागवत ने कहा कि पूरी दुनिया ने देखा है कि कैसे चीन भारत के क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहा है। चीन के विस्तारवादी व्यवहार से हर कोई वाकिफ है। चीन कई देशों-ताइवान, वियतनाम, यू.एस., जापान और भारत के साथ लड़ रहा है। लेकिन भारत की प्रतिक्रिया ने चीन को परेशान कर दिया है।

उन्होंने कहा कि हमने देश में तनाव पैदा करने वाले सीएए विरोधों को देखा। इससे पहले कि इस पर आगे चर्चा की जा सके, इस साल कोरोना पर ध्यान केंद्रित किया गया। इसलिए, कुछ लोगों के दिमाग में सांप्रदायिक भड़कना था, जो कि केवल उनके दिमाग में ही रहा। कोरोना ने इन सभी विषयों को ढक दिया।

मोहन भागवत ने कहा कि पर्यावरण का विषय सर्वस्वीकृत व सुपरिचित होने से अपने घर में पानी को बचाकर उपयोग,प्लास्टिक का पूर्णतया त्याग व घर के आंगन में,गमलों में हरियाली, फूल,सब्जी बढ़ाने से लेकर वृक्षारोपण के उपक्रम कार्यक्रम तक कृति की चर्चा भी सहज व प्रेरक बन सकती है।

उन्होंने कहा कि सप्ताह में एक बार हम अपने कुटुम्ब में सब लोग मिलकर श्रद्धानुसार भजन व इच्छानुसार आनन्दपूर्वक घर में बनाया भोजन करने के पश्चात्, 2-3 घण्टों की गपशप के लिए बैठ जाएं और पूरे परिवार में आचरण का संकल्प लेकर, उसको परिवार के सभी सदस्यों के आचरण में लागू करने करें।

भारतीय विचार में संघर्ष में से प्रगति के तत्त्व को नहीं माना है। अन्याय निवारण के अंतिम साधन के रूप में ही संघर्ष मान्य किया गया है। विकास और प्रगति हमारे यहाँ समन्वय के आधार पर सोची गई है।

वोकल फॉर लोकर यह स्वदेशी संभावनाओं वाला उत्तम प्रारंभ है। परन्तु इन सबका यशस्वी क्रियान्वयन पूर्ण होने तक बारीकी से ध्यान देना पड़ेगा।इसीलिये स्व या आत्मतत्त्व का विचार इस व्यापक परिप्रेक्ष्य में सबने आत्मसात करनाहोगा,तभी उचित दिशामें चलकर यह यात्रा यशस्वी होगी।

भागवन ने कहा कि अर्थ, कृषि, श्रम, उद्योग तथा शिक्षा नीति में स्व को लाने की इच्छा रख कर कुछ आशा जगाने वाले कदम अवश्य उठाए गए हैं। व्यापक संवाद के आधार पर एक नई शिक्षा नीति घोषित हुई है। उसका संपूर्ण शिक्षा जगत से स्वागत हुआ है, हमने भी उसका स्वागत किया है।

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उन्होंने कहा कि हमारा कृषि का अनुभव गहरा व्यापक व सबसे लम्बा है। इसलिये उसमें से कालसुसंगत, अनुभवसिद्ध, परंपरागत ज्ञान तथा आधुनिक कृषि विज्ञान से देश के लिये उपयुक्त व सुपरीक्षित अंश, हमारे किसान को अवगत कराने वाली नीति हो।

कृषि नीति का हम निर्धारण करते हैं, तो उस नीति से हमारा किसान अपने बीज स्वयं बनाने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। हमारा किसान अपने को आवश्यक खाद, रोगप्रतिकारक दवाइयां व कीटनाशक स्वयं बना सके या अपने गाँव के आस-पास पा सके यह होना चाहिए।

इस महामारी के संदर्भ में चीन की भूमिका संदिग्ध रही यह तो कहा ही जा सकता है, परंतु भारत की सीमाओं पर जिस प्रकार से अतिक्रमण का प्रयास अपने आर्थिक सामरिक बल के कारण मदांध होकर उसने किया वह तो सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट है। स्वतंत्रता के बाद धैर्य, आत्मविश्वास व सामूहिकता की अनुभूति अनेकों ने पहली बार पाई है। अपने समाज की एकरसता का, सहज करुणा व शील प्रवृत्ति का, संकट में परस्पर सहयोग के संस्कार का, जिन सब बातों को सोशल कैपिटल ऐसा अंग्रेजी में कहा जाता है, उस अपने सांस्कृतिक संचित सत्त्व का सुखद परिचय इस संकट में हम सभी को मिला।

विश्व के अन्य देशों की तुलना में हमारा भारत संकट की इस परिस्थिति में अधिक अच्छे प्रकार से खड़ा हुआ दिखाई देता है। भारत में इस महामारी की विनाशकता का प्रभाव बाकी देशों से कम दिखाई दे रहा है, इसके कुछ कारण हैं।

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भारत का शासन, प्रशासन, सेना तथा जनता सभी ने इस आक्रमण के सामने अड़ कर खड़े होकर अपने स्वाभिमान, दृढ़ निश्चय व वीरता का उज्ज्वल परिचय दिया, इससे चीन को अनपेक्षित धक्का मिला लगता है। इस परिस्थिति में हमें सजग होकर दृढ़ रहना पड़ेगा।

मोहन ने बताया कि श्रीलंका, बांग्लादेश, ब्रह्मदेश, नेपाल ऐसे हमारे पड़ोसी देश, जो हमारे मित्र भी हैं और बहुत मात्रा में समान प्रकृति के देश हैं, उनके साथ हमें अपने सम्बन्धों को अधिक मित्रतापूर्ण बनाने में अपनी गति तीव्र करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि हमारी सेना की अटूट देशभक्ति व अदम्य वीरता, हमारे शासनकर्ताओं का स्वाभिमानी रवैया तथा हम सब भारत के लोगों के दुर्दम्य नीति-धैर्य का परिचय चीन को पहली बार मिला है। हम सभी से मित्रता चाहते हैं।वह हमारा स्वभाव है।परन्तु हमारी सद्भावना को दुर्बलता मानकर अपने बल के प्रदर्शन से कोई भारत को चाहे जैसा नचा ले,झुका ले,यह हो नहीं सकता,इतना तो अब तक ऐसा दुःसाहस करने वालों को समझ में आ जाना चाहिए।

इस महामारी के संदर्भ में चीन की भूमिका संदिग्ध रही यह तो कहा ही जा सकता है, परंतु भारत की सीमाओं पर जिस प्रकार से अतिक्रमण का प्रयास अपने आर्थिक सामरिक बल के कारण मदांध होकर उसने किया वह तो सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट है।

इस मौके पर उन्होंनो कहा कि 2019 में, अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी हो गया। फिर सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को अयोध्या में राम मंदिर को लेकर अपना फैसला सुनाया। संपूर्ण देश ने फैसले को स्वीकार कर लिया। पांच अगस्त 2020 को राम मंदिर निर्माण की शुरुआत हुई। हमने इस दौरान भारतीयों के धैर्य और संवेदनशीलता को देखा है।’

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उन्होंने यह भी कहा कि भारत में कोरोना के कारण नुकसान कम हुआ है, क्योंकि सरकार ने जनता को पहले से सतर्क कर दिया था। एहतियाती कदम उठाए गए और नियम बनाए गए। लोगों ने अतिरिक्त सावधानी बरती क्योंकि उनके मन में कोरोना का डर था। सभी ने अपना काम किया।

आपको बता दें कि नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में COVID-19 महामारी के कारण केवल 50 स्वयंसेवकों को सभागार के अंदर अनुमति दी गई थी।

Tags: आरएसएसमोहन भागवतराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
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