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कुश के बिना अधूरी मानी जाती है पितरों की पूजा, जानें कैसे

Writer D by Writer D
28/09/2021
in Main Slider, ख़ास खबर, धर्म, फैशन/शैली
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Pitru Paksha 2020

पितृ पक्ष 2020

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इस समय श्राद्ध पक्ष चल रहा है। श्राद्ध पक्ष के दौरान पितरदेव 16 दिनों के लिए अपने-अपने प्रियजनों से मिलने और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए धरती पर आते हैं। पितृपक्ष में लोग अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए उन्हें तर्पण और भोग लगाते हैं। पितृपक्ष में पितरों को बिना तर्पण दिए श्राद्ध कर्म पूरा नहीं होता है। पितरों को तर्पण देने में कुश का विशेष महत्व होता है। कुशा एक प्रकार की घास होती है  शास्त्रों में कुश को बहुत ही पवित्र माना गया है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य या धार्मिक अनुष्ठान को संपन्न करते समय कुशा का प्रयोग जरूर किया जाता है।

पितृपक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध में तिल और कुश की महत्ता इस मंत्र के द्वारा बताई गई है। जिसमें भगवान विष्णु कहते हैं कि तिल मेरे पसीने से और कुश मेरे शरीर के रोम से उत्पन्न हुए हैं। कुश का मूल ब्रह्मा, मध्य विष्णु और अग्रभाग शिव का जानना चाहिए। ये देव कुश में प्रतिष्ठित माने गए हैं। ब्राह्मण, मंत्र, कुश, अग्नि और तुलसी ये कभी बासी नहीं होते, इनका पूजा में बार-बार प्रयोग किया जा सकता है।

दर्भ मूले स्थितो ब्रह्मा मध्ये देवो जनार्दनः। दर्भाग्रे शंकरं विद्यात त्रयो देवाः कुशे स्मृताः।। विप्रा मन्त्राः कुशा वह्निस्तुलसी च खगेश्वर। नैते निर्माल्यताम क्रियमाणाः पुनः पुनः।।

तुलसी ब्राह्मणा गावो विष्णुरेकाद्शी खग। पञ्च प्रवहणान्येव भवाब्धौ मज्ज्ताम न्रिणाम।।

विष्णु एकादशी गीता तुलसी विप्रधनेवः। आसारे दुर्ग संसारे षट्पदी मुक्तिदायनी।।

किसी भी तरह के धार्मिक अनुष्ठान में कुश बहुत ही आवश्यक पूजा सामग्री मानी जाती है। कुश को अनुष्ठान करते समय उसे अंगूठी की भांति तैयार कर हथेली की बीच वाली उंगली में पहनी जाती है। अंगुठी के अलावा कुश से पवित्र जल का छिडकाव भी किया जाता है। मानसिक और शारीरिक पवित्रता के लिए कुश का उपयोग पूजा में बहुत ही जरूरी होता है। कुश का प्रयोग ग्रहण के दौरान भी उपयोग में लाया जाता है। ग्रहण से पहले और ग्रहण के दौरान खाने-पीने की चीजों में कुश डाल कर रख दिया जाता है। ताकि खाने की चीजों की पवित्रता और उसमें किसी भी तरह के कीटाणु प्रवेश न कर सके। कुश घास को लेकर रिसर्च में भी पाया गया है कि कुश घास प्राकृतिक रूप से छोटे-छोटे कीटाणुओं को दूर करने में बहुत ही सहायक होती है। कुश एक तरह से प्यूरिफिकेशन का काम करता है। पानी में कुश रखने से छोटे- छोटे सूक्ष्म कीटाणु  कुश घास के समीप एकत्रित हो जाते हैं।

अथर्ववेद में कुश घास के उपयोग के बारे में बताया गया है कि यह क्रोध को नियंत्रित करने में सहायक होती है। कुश घास का प्रयोग एक औषधि के रूप में किया जाता है। भगवान विष्णु के रोम से बनी होने के कारण इसे बहुत पवित्र माना गया है।

मत्स्य पुराण में कुश की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है कि जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण कर हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध कर फिर से धरती को समुद्र से निकालकर सभी प्राणियों की रक्षा की थी। भगवान वराह अवतार ने जब अपने शरीर पर लगे पानी को झटका तब उनके शरीर के कुछ बाल पृथ्वी पर आकर गिरा और कुश का रूप धारण कर लिया। तभी से कुश को पवित्र माना जाने लगा।

कुश के संबंध में महाभारत में एक प्रसंग है। एक बार जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आ रहे थे तब कुछ देर के लिए उन्होंने कलश को जमीन पर कुश घास पर रख दिया था। कुश पर अमृत कलश रखे जाने से तब से इसे बहुत ही पवित्र मानी जाने लगी।

महाभारत में जब कर्ण ने अपने पितरों का तर्पण किया तब इसमें उन्होंने कुश का ही उपयोग किया था। तभी से यह मान्यता है कि कुश पहनकर जो भी अपने पितरों का श्राद्ध करता है उनसे पितरदेव तृप्त होते हैं।

सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ के दौरान कुश के आसन का प्रयोग करना बहुत ही शुभ माना जाता है।

Tags: pitru pakshaPitru Paksha 2021Pitru Paksha Shradhshradh
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