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का वर्षा जो आफत लानी

Desk by Desk
19/10/2020
in Main Slider, ख़ास खबर, राष्ट्रीय, विचार
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बारिश का कहर

बारिश का कहर

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सियाराम पांडेय ‘शांत’

वर्षा अच्छी लगती है लेकिन तब जब वह मौसम के अनुकूल हो, संतुलित और जरूरत भर हो। वर्षा कम हो तो भी और अधिक हो तो भी परेशानियों का ग्राफ बढ़ जाता है। अत्यधिक वर्षा सुख नहीं देती, मुसीबत का सबब बन जाती है। पिछले कई वर्षों से ऋतुचक्र का संतुलन बिगड़ गया है। समय पर वर्षा होती नहीं। बरसात के मौसम में वर्षा या तो होती नहीं या इतनी कम या अधिक होती है कि लोगों का जीवन संकटापन्न हो जाता है। पहले कहा जाता था कि का वर्षा जो फसल सुखानी। अब इसे इस रूप में कहा जा सकता है कि का वर्षा जो आफत लानी।  इधर महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अतिवर्षाजन्य बाढ़ ने जान—माल का भारी नुकसान किया है। तेलंगाना में भारी बारिश के बाद जलप्लावन के से हालात हैं।

तेलंगाना राज्य के अलग—अलग इलाकों में बेमौसम बारिश और बाढ़ की मार से  तकरीबन 50 लोगों  की मौत हो चुकी है। रामनाथपुरा की सड़कें समुद्र बनी हुई हैं। हैदराबाद के कई इलाके जलमग्न हो चुके हैं।वहां के लोग बाढ़ में फंसे हुए हैं । उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ रहा है। तेलंगाना सरकार की मानें तो बाढ़ से राज्य को करीब 5 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। तेलंगाना सरकार ने केंद्र से मदद की मांग की है। यह समस्या जितनी अतिवर्षण की है, उससे कहीं अधिक बांधों के जल के समन्वयन के अभाव की भी है। जिन राज्यों में बांध बनाए गए हैं, उन राज्यों का पानी के अत्यधिक इस्तेमाल का मोह भी नदी के प्रवाह वाले राज्यों में बाढ़ और जान-माल के नुकसान का सबब बनता रहा है। बांध टूट जाए तो भी और उससे पानी छोड़ा जाए तो भी। मतलब मजा मारें गाजी मियां जूझें डफाली वाली स्थिति है।

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हाल के दिनों में आंध्र प्रदेश में  इतनी बरसात हुई कि नागार्जुन सागर बांध के 18 गेट करीब 10 फीट तक खोलने पड़ गए। जिससे बाढ़ का पानी आसपास के इलाकों में घुस गया। गत वर्ष 2019 में मुंबई से 250 किलोमीटर दूर रत्नागिरी जिले में तिवारे बांध 15 साल में ही टूट गया था। 2004 में बने इस बांध के टूटने से 18 लोग मर गए थे जबकि 25 से ज्यादा अब भी लापता हैं।

हजारों एकड़  फसल तबाह बर्बाद हो गई थी। नेपाल और चीन द्वारा अपने यहां बने बांधों से भारी मात्रा में पानी छोड़ने से हर साल भारत में कितनी तबाही होती है, यह किसी से छिपा नहीं है। इस पीड़ा को बिहार, उत्तर प्रदेश और असम से बेहतर भला और कौन जानता है। वहां हर साल अत्यधिक वर्शा से बाढ़ नहीं आती। चीन और नेपाल में बने बांधों से पानी छोड़े जाने की वजह से आती है।

भारत विश्व का तीसरा ऐसा देश है जहां सबसे अधिक बांध हैं। देश में 25 प्रतिशत बांध 50 से 100 वर्ष पहले बने हैं और 80 प्रतिशत बांधों का निर्माण 25 वर्ष या उससे पहले हुआ है। इसमें संदेह नहीं कि  स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में कई बड़े बांध ध्वस्त हो चुके हैं। वर्ष 1979 में गुजरात में आई ऐसी ही आपदा में हजारों लोगों की जान चली गई थी। भारत में अब तक बने 10 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले 5344 बांधों में से 92 फीसद बांध अंतरराज्यीय सीमा पर बने हैं यानी बांध एक राज्य में है और नदी का निचला बहाव वाला हिस्सा दूसरे राज्य में है। बांध वाले राज्य में अत्यधिक वर्षा होने का खामियाजा बहाव वाले राज्यों को भुगतना पड़ता है। विडंबना इस बात की है कि तकरीबन चालीस साल पहले संसद में बांध सुरक्षा बिल लाया गया, जो आज तक पास नहीं हो सका है। इसमें  प्रावधान है कि नदियों की छाती पर किए गए निर्माण की चौकसी, निरीक्षण, रखरखाव और परिचालन सही तरीके से हो और जिम्मेदारी तय की जा सके। बांध इस देश की जरूरत हैं लेकिन उसके जितने फायदे हैं,उतने ही नुकसान भी हैं। फायदों के लिए नुकसान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

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पश्चिमी महाराष्ट्र के तीन जिलों में बारिश ने जमकर कोहराम मचाया है। सोलापुर संगली और पुणे में भारी बारिश के बाद बाढ़ से अब तक 27 लोगों की मौत हो चुकी है। करीब 20 हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया है। कई दिनों से पश्चिमी महाराष्ट्र में मूसलाधार बारिश हो रही है। मौसम विभाग ने मुंबई में भारी बारिश की चेतावनी देने के साथ ही येलो अलर्ट जारी  कर रखा है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने आर्मी, नेवी और एयरफोर्स से अलर्ट पर रहने का आग्रह किया है। केंद्र सरकार से मदद मांगी है। एनडीआरएफ की टीमों को ओसमानाबाद, सोलापुर, पंढरपुर और बारामती में तैनात किया गया है। पुणे के जनता वसाहट स्ट्रीट नंबर-29 में रात के वक्त 18 इंच पानी की पाइप लाइन फट गई। इसके बाद पूरी बस्ती में पानी भर गया। घटना में 9 लोग घायल हो हैं। इनमें से 5 को ससून अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अन्य घायलों को भारती विश्वविद्यालय अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। पुणे में जब पहाड़ियों पर पानी की टंकिया बनाई गई हैं तो उन्हें पानी के दबाव और पाइप लाइनों की मजबूती का तो विचार करना ही चाहिए। चूंकि अधिकारियों पर ऐसे मामलों में कार्रवाई नहीं होती। उन पर हत्या जैसी संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज नहीं होते। उनसे जनता के जान—माल की भरपाई नहीं कराई जाती, इसलिए भी इस तरह के हालात आए दिन आम जनता को देखने पड़ते हैं। इस तरह के हालात बने ही नहीं, प्रयास तो इस बात के होने चाहिए।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों से बात की है। उन्हें हर संभव मदद का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा है कि पूरा देश बाढ़ पीड़ित राज्यों के साथ है लेकिन बार—बार यह बात कहने की जरूरत क्यों पड़ती है। बाढ़ से बचाव को लेकर राज्य सरकारें गंभीर क्यों नहीं हो पाती, यह चिंताजनक बात भी है और विचारणीय भी। वैसे भी यह तो भारी बारिश है। एक दो दिन की सामान्य बारिश में भी महाराष्ट्र  खासकर मुम्बई में नाव चलने लगती है।

इस स्थिति पर भी विचार किए जाने की जरूरत है। जब नदी, नालों पर अतिक्रमण हो जाए, उनके जल अधिग्रहण क्षेत्र पर भी भवन और कार्यालय तन कर खड़े हो जाएं तो जरा सी बारिश में भी पानी सड़कों पर नहीं तो और कहां बहेगा? महाराष्ट्र और कर्नाटक में भारी बारिश और बाढ़ से हालात काफी गंभीर हैं। एक तरफ जहां कर्नाटक में लगातार हो रही बारिश के बीच प्रमुख बांधों का पानी छोड़े जाने से बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई है तो वहीं महाराष्ट्र में मूसलाधार बारिश के बाद आई बाढ़ के कारण कई लोगों की मौत हो गई है। राज्य में मौसम की मार से किसानों को काफी नुकसान हुआ है। लाखों हेक्टेयर भूमि में बड़े पैमाने पर फसल बर्बाद हो गई है। उत्तर कर्नाटक में पिछले तीन महीने में तीसरी बार बाढ़ आई है। इस क्षेत्र के बेलगावी, कलबुर्गी, रायचुर, यादगिर, कोप्पल, गोदाग, धारवाड़, बागलकोट, विजयपुरा और हावेरी इलाके सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। बारिश से जुड़ी घटनाओं में महाराष्ट्र में अब तक कई लोगों की मौत हो चुकी है जबकि कर्नाटक के अनेक हिस्सों में लगातार बारिश और प्रमुख बांधों से पानी छोड़े जाने के कारण आई बाढ़ से हालात गंभीर हो गए हैं। हैदराबाद के बाद मायानगरी में अब जल की माया नजर आ रही है।

महाराष्ट्र के मुंबई और पुणे समेत कई इलाकों में मूसलाधार बारिश हुई और पूरा शहर पानी से भर गया। सड़कों, गलियों में घुटनों से अधिक तक पानी भर गया है। पानी का बहाव इतना तेज था कि उसमें एक शख्स बहने लगा। लोगों को उसे बचाना पड़ा।

पश्चिमी महाराष्ट्र के सोलापुर जिले की पंढरपुर तहसील में भारी बारिश के चलते 8 हजार  से अधिक लोगों को निकालकर सुरक्षित स्थानों पर भेना पड़ा। उजानी बांध से नीरा और भीमा नदियों में अतिरिक्त पानी छोड़े जाने की वजह से हालात बिगड़े हैं। यह दावा अधिकारियों का है। बांध से 2.3 लाख क्यूसेक पानी अचानक दोड़ दिया जाए तो निचले इलाकों में क्या स्थिति होगी, इस पर विचार करना भी उचित नहीं समझा गया। उनकी जिम्मेदारी है कि बांध बचा रहे क्योंकि बांध का टूटना आमजन के लिए उचित नहीं है लेकिन बांध को बचाने में जान—माल का कितना नुकसान हो रहा है, इस पर कभी विचार नहीं होता। बांध से पानी इसी साल छोड़ा गया है, ऐसा भी नहीं है। साल—दर साल यही हालात बनते हैं। आगे भी यह सिलसिला चलता रहा है। बांध के निचले बहाव वाले क्षेत्रों की जिंदगी बांध की सुरक्षा कर रहे अधिकारियों के रहमो करम पर है।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर सुझाव दिया है कि मुंबई की बारिश के पानी का इस्तेमाल सिंचाई, शहर के आसपास के उद्योगों और नासिक तथा अहमदनगर जैसे शहरों में बागवानी के लिए किया जाए। गडकरी ने पत्र में कहा कि अतिरिक्त पानी को सूखा प्रभावित इलाकों में घरेलू और अन्य इस्तेमाल के लिए भी ले जाया सकता है, ताकि जल की कमी से पार पाया जा सके। यदि व्यवस्थित रूप से योजना बनाई जाए तो बाढ़ के पानी, नाले और सीवेज को ठाणे की ओर मोड़ा जा सकता है और इस पानी को रास्ते में शोधित कर एक बांध में रखा जा सकता है। इस पानी का इस्तेमाल सिंचाई और शहर के आसपास के उद्योगों तथा नासिक एवं अहमदनगर जैसे नगरों में बागवानी के लिए किया जा सकता है। बकौल गडकरी, यह योजना मुंबई में मीठी नदी की वजह से उत्पन्न होने वाली परेशानियों के समसामाधान में सहायक हो सकती है। उन्होंने मीठी नदी पर एक बैराज बनाने का प्रस्ताव भी दिया है ताकि पानी समुद्र में प्रवाहित किया जा सके।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का सुझाव उचित है लेकिन आपात काल में इस तरह के सुझाव का क्या मतलब है। यह सामान्य दिनों में किए जाने वाले प्रयास का मामला है। महाराष्ट्र के नेताओं को सोचना चाहिए कि उनके राज्य के लिए बेहतर क्या है। दरवाजे पर बारात आ जाए और किसी प्रमुख घाराती को शौच जाना पड़े तो स्थिति हास्यास्पद हो जाती है। बाढ़ के साथ भी कमोवेश यही बात है। पानी टंकियां और बांध राम भरोसे हैं। उनकी मरम्मत और रखरखाव की स्थिति बेहद दयनीय है, ऐसे में लोकजीवन की सुरक्षा का लक्ष्य कैसे पूरा होगा, इस पर गहन आत्ममंथन की जरूरत है।

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