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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की न्यायपालिका की सराहना

Desk by Desk
06/02/2021
in Main Slider, ख़ास खबर, नई दिल्ली, राजनीति, राष्ट्रीय
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5 judges of supreme court corona positive

5 judges of supreme court corona positive

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सियाराम पांडेय ‘शांत’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यायपालिका की सराहना की है। उन्होंने कहा है कि न्यायपालिका ने लोगों के अधिकार की रक्षा करने और निजी स्वतंत्रता को बरकरार रखने के अपने कर्तव्य का पूर्ण निष्ठा से निवर्हन किया है। न्यायपालिका ने उन स्थितियों में भी अपने कर्तव्य का निष्ठा से पालन किया, जब राष्ट्र हितों को प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता थी। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के दौरान वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से दुनिया में सर्वाधिक संख्या में सुनवाई की।

प्रधानमंत्री की यह बात आसानी से विपक्ष के गले नहीं उतरने वाली। वह इसमें भी राजनीति के उत्स तलाशने की फिराक में लग गया होगा। विपक्ष न्यायपालिका का हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता रहा है और आज भी उसकी फितरत में यह बात शामिल है । इतना सब जानने समझने के बाद भी अगर प्रधानमंत्री न्यायपालिका की सराहना कर रहे हैं तो इसमें विपक्ष को दाल में कुछ काला न नजर आए, यह कैसे कहा जा सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह बात तब कही जब वे गुजरात उच्च न्यायालय के 6 दशक पूरे होने पर डाक टिकट आनलाइन जारी कर रहे थे। न्यायपालिका की प्रशंसा उन्होंने तब की जब न्यायपालिका के कई फैसलों के चलते केंद्र सरकार को विपक्ष के तीक्ष्ण आरोपों का सामना करना पड़ा। वे चाहते तो न्यायपालिका के प्रति अपनी नाराजगी भी जाहिर कर सकते थे, लेकिन उन्होंने न्यायपालिका पर जो संतुलित प्रतिक्रिया जाहिर की, उससे उनकी परिपक्वता और मुखिया होने के भावबोध का पता चलता है।

‘ मुखिया मुख सो चाहिए खान, पान व्यवहार।’ यह बात हमारे मनीषियों ने बहुत सोच विचार कर कही थी। मुखिया को मुख की तरह ही व्यवहार करना चाहिए। मुखौटा तो बिल्कुल भी नहीं बनना चाहिए। जो मुखौटा बन जाता है, वह सही मायने में मुखिया होने का अपना अधिकार खो देता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना लगभग पूरा विपक्ष करता है लेकिन इसके बाद भी वे उसकी बात का बुरा नहीं मानते। उनके अहित की नहीं सोचते। लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है मतभेद लेकिन आजकल मतभेद पर मनभेद भारी पड़ रहा है।

प्रधानमंत्री इस बात को समझते भी है और इस समस्या के समाधान की यथासंभव कोशिश भी करते हैं। वे विरोधी को विरोधी ही नहीं मानते बल्कि समय-समय पर उनकी प्रशंसा भी करते हैं। एक दार्शनिक ने लिखा है कि दुश्मनी करो मगर इतनी न करो कि दोस्ती की गुंजाइश ही न बचे। मिलने पर सिर झुकाना पड़े। प्रधानमंत्री इस बात को समझते हैं और विरोध में भी समझौते के लिए एक स्पेस तो बनाकर रखते ही हैं। हर राजनीतिज्ञ को चाहे वह जिस किसी भी दल का क्यों न हो, ऐसा ही करना चाहिए। संभावनाओं की समाप्ति घातक है और इस विघातक स्थिति से हर किसी को बचना चाहिए।

हालांकि विरोध-विरोध होता है। उसमें समर्थन का पुट नहीं रखा जा सकता लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सत्य है कि सिक्के के भी दो पक्ष होते हैं। दोनों एक जैसे नहीं हो सकते। नफरत और प्रेम, विरोध और समर्थन एक दूसरे से जुड़े शब्द हैं। जुड़े भाव हैं। इस बात को जो जितनी जल्दी समझ लेता है, वह उसी त्वरा के साथ विकासपथ पर गतिशील हो जाता है। कविवर रहीम ने भी लिखा है कि अंतर अंगुरी चार कौं, सांच-झूठ में होय, सच मानी देखी कहै, सुनी न मानै कोय। मदारी के करतब देखने वालों को पता होता है कि जिस बच्चे का पेट फटा दिख रहा है, उसे चाकू लगा ही नहीं है। उसकी छटपटाहट झूठी है।

जब एक आदमी को वास्तव में चाकू लगने के बाद वहां उपस्थित लोग तक दाएं-बाएं हट जाते हैं और ऐसा सोचती हैं कि कौन पुलिस-फौजदारी के चक्कर काटे तो मदारी किसी बच्चे का पेट फाड़ दे और वहां इस दृश्य को देखने और मदारी को पैसे देने के लिए आपको जनता दिखेगी। मतलब आंखों का देखा हुआ भी बहुधा झूठ होता है। हाथों की सफाई अथवा नजरबंद होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यायालीय कार्यों की प्रशंसा अकेले तो की ही है। यह भी कहा है कि हर भारतवासी यह कह सकता है कि हमारी न्यायपालिका ने हमारे संविधान की रक्षा के लिए दृढ़ता से काम किया।

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हमारी न्यायपालिका ने अपनी सकारात्मक व्याख्या से संविधान को मजबूत किया है। जो विपक्षी दल न्यायपालिका की कार्यशैली की आलोचना करते नहीं अघाते, उनके लिए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान विपक्ष के लिए किसी झटके से कम नहीं है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि यह जानकर गर्व होता है कि भारतीय न्यायालय में महामारी के दौरान वीडियो कांफ्रेंस के जरिए विश्व में सबसे अधिक मामले सुने गए हैं।

भारतीय न्यायपालिका ने लोगों के अधिकार की रक्षा करने, निजी स्वतंत्रता को बरकरार रखने के अपने कर्तव्य का निष्ठा से पालन किया है।उसने उन स्थितियों में भी अपने कर्तव्य का पालन किया, जब राष्ट्र हितों को प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता थी। किसी राज्य के उच्च न्यायालय पर डाक टिकट जारी होना उस राज्य ही नहीं, अपितु देश भर के नैयायिकों को अहमियत प्रदान कराता है। उनका संबल बढ़ाता है। बकौल प्रधानमंत्री , भारतीय अदालतों में जिस तरह आधुनिकीकरण हो रहा है, उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। डिजिटल इंडिया मिशन’ की बदौलत देश की न्याय प्रणाली का तेजी से आधुनिकीकरण हो रहा है और 18 हजार से अधिक अदालतें कम्प्यूटरीकृत हो चुकी हैं।

प्रधानमंत्री का मानना है कि न्यायपालिका ने सत्य और न्याय के लिए जिस कर्तव्यनिष्ठा से काम किया और अपने संवैधानिक कर्तव्यों के लिए जो तत्परता दिखाई, उससे भारतीय न्याय व्यवस्था और भारत के लोकतंत्र दोनों मजबूत हुए हैं। अदालत और बार ने अपनी समझ एवं विद्वता के कारण विशिष्ट पहचान बनाई है। सामान्य नागरिक के मन में एक आत्मविश्वास पैदा किया है। उसे सच्चाई के लिए खड़े होने की ताकत दी है। जब हम आजादी से अब तक देश की यात्रा में न्यायपालिका के योगदान की चर्चा करते हैं, तो हम ‘बार’ के योगदान की भी चर्चा करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारतीय समाज में कानून का शासन, सदियों से सभ्यता और सामाजिक ताने-बाने का आधार रहा है।

न्याय ही सुराज की बुनियाद है न्यायपालिका ने संविधान की रक्षा करने का दायित्व पूरी दृढ़ता से निभाया है। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को उन्होंने हमारे संविधान की प्राणवायु बताया। सरकार और न्यायपालिका दोनों का यह दायित्व बनता है कि वे मिलकर लोकतंत्र के लिए विश्वस्तरीय न्याय प्रणाली तैयार करें जो समाज के सबसे वंचित तबके के लिए भी सुलभ हो। वैसे भी न्याय एकतरफा नहीं होता है। न्याय को जब तक माना न जाए तब तक उसका कोई औचित्य नहीं है। जो लोग अक्सर न्याय पालिका के समझौतों पर सवाल उठाते रहते हैं, उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णयों पर आत्ममंथन कराना चाहिए। यही उचित भी है और यही देश की व्यापक तरक्की की मांग भी है।

Tags: judiciaryJudiciary's AppreciationPrime Minister Narendra Modi praised the judiciarySupreme Courtन्यायपालिका की सराहनाप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीसुप्रीम कोर्ट
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