वट सावित्री (Vat Savitri) का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं और वट यानी बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं। वट सावित्री एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है जो विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पतियों की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए मनाया जाता है।यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन (मई या जून में) मनाया जाता है, विशेष रूप से उत्तर भारत, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में ये व्रत बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। आइए जानते हैं कि यदि आपके लिए वट वृक्ष के पास जाकर पूजा करना संभव नहीं है, तो आप घर पर भी विधिपूर्वक वट सावित्री की पूजा कैसे कर सकते हैं।
वट सावित्री (Vat Savitri) व्रत कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह अमावस्या तिथि की शुरुआत 26 मई को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर होगी। वहीं तिथि का समापन अगले दिन यानी 27 मई को सुबह 8 बजकर 31 मिनट पर होगा। ऐसे में वट सावित्री का व्रत सोमवार 26 मई को रखा जाएगा।
घर पर वट सावित्री (Vat Savitri) की पूजा करने की सही विधि और नियम
व्रत के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।पूजा के लिए एक साफ स्थान चुनें। एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। यदि संभव हो तो वट वृक्ष की एक छोटी टहनी या डाली मंगवा लें। यदि यह भी संभव न हो, तो आप बरगद के पेड़ का चित्र या सावित्री और सत्यवान की तस्वीर का उपयोग कर सकती हैं। पूजा के लिए इन सामग्री की जरूरत पड़ेगी। सावित्री और सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर, भिगोया हुआ काला चना, कच्चा सूत (कलावा) ,रोली, सिंदूर, अक्षत, फूल (लाल और पीले) धूप, दीपक, अगरबत्ती,फल, मिठाई, जल से भरा कलश, बांस का पंखा, सवा आदि।
वट सावित्री (Vat Savitri) व्रत की पूजा विधि
पूजा शुरू करने से पहले, अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करते हुए व्रत का संकल्प लें। चौकी पर सावित्री और सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। यदि वट की टहनी है, तो उसे भी स्थापित करें। देवी सावित्री और सत्यवान का आह्वान करें। मूर्तियों या तस्वीर पर रोली, सिंदूर और अक्षत चढ़ाएं।फूल अर्पित करें। धूप और दीपक जलाएं।फल और मिठाई का भोग लगाएं। यदि वट की टहनी है, तो उसके चारों ओर कच्चा सूत लपेटें। यदि तस्वीर है, तो उसके चारों ओर लपेटें। कुछ महिलाएं इस दौरान वट वृक्ष की परिक्रमा भी करती हैं, यदि घर पर टहनी है तो आप उसकी परिक्रमा कर सकती हैं।
वट सावित्री (Vat Savitri) व्रत की कथा
यह कथा सावित्री के अपने पति सत्यवान के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण की कहानी है, जिसके कारण उन्होंने यमराज से भी अपने पति के प्राण वापस ले लिए थे। पूजा के अंत में आरती करें। पूजा में चढ़ाए गए फल और मिठाई को प्रसाद के रूप में सभी में वितरित करें। अपने बड़ों का आशीर्वाद लें। पूरे दिन निराहार रहने के बाद शाम को पूजा करके व्रत खोलें। कुछ महिलाएं फल और जल ग्रहण करती हैं, जबकि कुछ अन्न भी खाती हैं।
वट सावित्री (Vat Savitri) व्रत के जरूरी नियम
इस दिन महिलाओं को सोलह श्रृंगार करना चाहिए। व्रत रखने वाली महिला को पूरे दिन मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहना चाहिए। किसी भी प्रकार की नकारात्मक सोच से दूर रहें। अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार दान-पुण्य करें। घर पर वट सावित्री की पूजा करना भी उतना ही फलदायी होता है जितना कि वट वृक्ष के नीचे जाकर करना, बस आप इसे सही विधि और श्रद्धा के साथ करें।







