धर्मशाला। धर्मशाला का खनियारा गांव अपनी खूबसूरती के कारण का प्रसिद्ध है पर इतना ही नहीं, इस गांव की एक और खासियत है जो इसे अन्य राज्यों से अलग बनाती है। अंग्रेजी हुकूमत के वक्त से पहले से यह गांव क्षेत्र के लोगों के लिए रोजगार का महत्वपूर्ण जरिया बना रहा है। यही नहीं सिर छुपाने के लिए जब भी कोई छत बनाता था तो इस गांव में जरूर आना पड़ता था।
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दरअसल इस गांव में स्लेट की खान हैं अौर पहाड़ पर कई लोगों की खान हैं, जहां पर ग्रामीण खनन करके स्लेट निकालते हैं। इसे नीला सोना भी कहा जाता है। स्लेट के कारीगर, मजदूर, घोड़ा व खच्चर वालों सहित नेपाल तक के लोग यहां पर आकर रोजगार पा रहे थे। लेकिन अब उस स्तर पर यहां स्लेट नहीं निकाले जाते जो पहले कारोबार था। उसके मुकाबले यह कारोबार काफी कम हो गया है।
पहले 625 हेक्टेयर पर स्लेट निकालने का कारोबार चलता था। लेकिन अब सिर्फ 25 हेक्टेयर में ही स्लेट निकालने की अनुमति है। वैज्ञानिक तरीके से स्लेट निकालने के लिए भू विज्ञानियों की हिदायत की पालना हो रही है। पहले के मुकाबले कम हुए कारोबार से न केवल अासपास के लोगों का ही रोजगार छिना है, बल्कि इस गांव के जो पुराने ठेकेदार व लोग थे उन्होंने भी अपना पेशा बदल लिया है। बहुत कम लोग ही अब स्लेट का काम कर पा रहे हैं। स्लेट कारोबार को पर्यावरण विभाग की इजाजत की बाधता के कारण पुलिस व वन विभाग की टीमों की दबिश रहती थी, जिस कारण लोगों को चालान व जुर्माना भुगतना पड़ता था, अब लोगों ने कारोबार ही कम कर दिया है।
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कारीगरों की कमी व कानूनी अड़चनों के कारण लोगों ने अपना कारोबार बंद कर दिया है। पहले कुल्लू में अालू का सीजन लगाने के बाद वहां के घोड़ा व खच्चर मालिक यहां पर स्लेट ढोने का काम करते थे। लेकिन अब यहां कारोबार न होने से वह भी नहीं आ रहे खनियारा की स्लेट खानों के दम पर फतेहपुर में ट्रक यूनियन चलती थी, जैसे जैसे कारोबार बंद हुअा यह ट्रक यूनियन भी बंद हो गई। किसी जमाने में यह ट्रक यूनियन प्रदेश में नंबर एक पर थी।