लंकापति रावण को सिर्फ उसके अहंकार और बुराइयों ने नष्ट कर दिया, वरना रावण जितना ज्ञानी और कोई नहीं था। रावण की बुराइयों के चलते उसे पूरी दुनिया नकारात्मक छवि से देखती है। लेकिन आपको बता दें कि रावण एक विद्वान और प्रकांड पंडित था और उसने धर्मशास्त्र को भी बहुत कुछ दिया हैं। आइए जानते हैं रावण के वो 5 योगदान के बारे में, जो धर्मशास्त्र का हिस्सा बने।
शिव तांडव स्त्रोत लिखा था
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक बार तो रावण इतना ज्यादा अहंकारी बन गया था कि उसने भगवान शिव की नगरी कैलाश पर्वत को ही उठा लिया था। फिर भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत का वजन इतना बढ़ा दिया था कि रावण का हाथ उसके नीचे दब गया। फिर रावण ने क्रोधित भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्त्रोत की रचना की। इसी से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे आशीर्वाद दिया।
खगोल और ज्योतिष विज्ञान में योगदान
रावण ने खगोल और ज्योतिष विज्ञान में भी महारत हासिल की थी। इसके अलावा उसे तंत्र का भी ज्ञान था। रावण ने अपने इस ज्ञान को रावण संहिता में संरक्षित किया था। बता दें रावण संहिता के सिद्धांतों को आज भी स्वीकारा जाता है। रावण के पास कुछ ऐसी भी गजब की शक्तियां थीं, जिससे उसने न सिर्फ देवताओं को परास्त किया था बल्कि अपने तप के बल से सभी नौ ग्रहों को अपने पक्ष में कर लिया था। हैरानी वाली बात तो यह है कि रावण ने शनि ग्रह को भी वर्षों तक अपने महल में कैद कर रखा था। कथाओं के मुताबिक, जब हनुमान जी सीता की खोज में लंका पहुंचें थे, तब जाकर उन्होंने शनिदेव को मुक्ति दिलाई थी।
महान पुरोहित
रावण परम शिव भक्त था। उसे वास्तुशास्त्र का भी ज्ञान था। कथाओं के मुताबिक, भगवान शंकर ने माता पार्वती के लिए सोने की लंका बनवाने के बाद उसमें गृह प्रवेश करवाने हेतु रावण को पुरोहित के लिए चुना था। लेकिन रावण को वह लंका इतनी पसंद आ गई कि उसने शिव से उस लंका की ही मांग कर ली। इसके अलावा जब भगवान राम ने रामेश्वरम में सेतु बनाने के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी, तब उन्होंने पूजन के लिए योग्य पुरोहित रावण को ही आमंत्रित किया था। इतना ही नहीं बल्कि रावण ने भगवान राम का ये आग्रह भी स्वीकार कर लिया था।
संगीत, कविता व आयुर्वेद का भी था जानकार
रावण में कई अवगुण थे, बावजूद इसके वह एक अच्छा संगीतज्ञ, कविता प्रेमी और आयुर्वेद का भी जानकार था। रावण ने तंत्र-मंत्र में भी सिद्धि प्राप्त की थी।
रावण संहिता और अरुण संहिता
संस्कृत के मूल ग्रंथ अरुण संहिता जिसे ‘लाल-किताब’ के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि सूर्य के सारथी अरुण ने इसका ज्ञान रावण को ही दिया था। बता दें यह ग्रंथ जन्म कुण्डली, हस्त रेखा और सामुद्रिक शास्त्र का मिश्रण है। वहीं रावण संहिता किताब लंकापति रावण के संपूर्ण जीवन के बारे में बताती है। साथ ही इस किताब में ज्योतिष की कई जानकारियों का भी भंडार है।