भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हरतालिका तीज (Hartalika Teej) मनाई जाती है। यह व्रत हिंदू धर्म में सबसे कठिन माना जाता है। सुहागिनें और कुंवारी कन्याएं श्रद्धापूर्वक इस व्रत को रखती हैं। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन के साथ भगवान गणेश के पूजा के लिए खास है। हरतालिका तीज (Hartalika Teej) की व्रतकथा अखंड सुहाग का वरदान देने वाली मानी जाती है। बाला जी ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र सीहोर के ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ गणेश शर्मा ने बताया की इस वर्ष यह व्रत दिन सोमवार, 18 सितंबर 2023 को रखा जाएगा।
हरतालिका तीज (Hartalika Teej) का महत्व
इस दिन सुहागिन निर्जला व्रत रखकर पति की लंबी उम्र की कामना करती है। यह व्रत निराहार और निर्जला रखा जाता है। मान्यता के अनुसार, 24 घंटे तक बिना अन्न-जल के सुहागिन महिलाएं हरतालिका तीज का व्रत रहती हैं। यह पर्व मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार के साथ ही कई राज्यों में मनाया जाता है।
हरतालिका तीज (Hartalika Teej) व्रत कथा
हरतालिका तीज (Hartalika Teej) की पौराणिक कथा भगवान शिव ने ही माता पार्वती को सुनाई थी। इसी कथा में मां पार्वती को उनका पिछला जन्म याद दिलाया था। महादेव कहते हैं कि देवी पिछले जन्म में तुमने मुझे पाने के लिए बहुत छोटी उम्र में घोर तपस्या की थी। तुमने ना तो कुछ खाया और ना ही पीया बस हवा और सूखे पत्ते चबाए। जला देने वाली गर्मी हो या कंपा देने वाली ठंड तुम नहीं हटी। वर्षा में भी तुमने जल नहीं पिया। तुम्हें इस हालत में देखकर तुम्हारे पिता दु:खी थे। उनको दु:खी देख कर नारद मुनि आए और कहा कि मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं। वह आपकी कन्या की से विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं।
नारद जी की बात सुनकर आपके पिता बोले अगर भगवान विष्णु यह चाहते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं। परंतु जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम दुःखी हो गईं। तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछा तो तुमने कहा कि मैंने सच्चे मन से भगवान् शिव का वरण किया है, लेकिन मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णु जी के साथ तय कर दिया है। मैं विचित्र धर्मसंकट में हूं। अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा।
तुम्हारी सखी ने तुम्हें समझाया। उसने कहा कि प्राण छोड़ने का कारण ही क्या है। संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिए। भारतीय नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे मन से पति रूप में एक बार वरण कर लिया, जीवनपर्यंत उसी से निर्वाह करें। मैं तुम्हें घनघोर वन में ले चलती हूं जो साधना स्थल भी है और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी नहीं पाएंगे। मुझे पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।
भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं कि तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया। तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुंचा। तुमसे वर मांगने को कहा, तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा, ‘मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए।
तब तथास्तु कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया। उसी समय गिरिराज अपने बंधु-बांधवों के साथ तुम्हें खोजते हुए वहां पहुंचे। तुमने कहा कि मैं घर तभी जाऊंगी अगर आप शिवजी से मेरा विवाह करेंगे। तुम्हारे पिता मान गए औ उन्होने हमारा विवाह करवाया।
इस व्रत का महत्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मनवांछित फल देता हूं। इस पूरे प्रकरण में तुम्हारी सखी ने तुम्हारा हरण किया था। इसलिए इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत हो गया। इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली महिलाएं माता पार्वती के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।