धर्म डेस्क। सत्रह दिनों के सोलह श्राद्ध यज्ञों के समान है। श्राद्ध पितरों को दिया भोजन अक्षय हो जाता है। वेदशास्त्र द्वारा अनुमोदित व विज्ञान सम्मत भी है श्राद्ध। एक सितम्बर को पूर्णिमा से प्रारम्भ तो 17 सितम्बर सर्वपितृ अमावस्या को सम्पन्न,चार सितम्बर को कोई श्राद्ध नहीं है। अधिमास के चलते मातामह श्राद्ध एक माह बाद होगा।
आश्विन कृष्ण पक्ष पितृपक्ष के नाम से प्रसिद्ध है। भाद्रशुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या पर्यंत सोलह दिन सोलह श्राद्ध के नाम से जाने जाते है। इस वर्ष सोलह श्राद्ध सत्रह दिनों के है। 1 सितम्बर मंगलवार को प्रातः9.38 बजे के बाद पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ होगी अतः पूर्णिमा के श्राद्ध के साथ ही सोलह श्राद्ध प्रारम्भ होंगे जो 17 सितम्बर गुरुवार को सर्वपितृ अमावस्या तक रहेंगे। ये सोलह दिन पितरों के ऋण चुकाने के दिन है। पितृ पक्ष में परिजनों की मृत्यु तिथि पर श्राद्ध व तर्पण करने से उनकी तृप्ति होती है और ये वर्ष पर्यंत प्रसन्न रहते है।
आचार्य रामचन्द्र शर्मा वैदिक ने बताया कि इस वर्ष 4 सितम्बर को कोई श्राद्ध कर्म नही होगा। 3 सितम्बर को द्वितीया का तो 5 सितंबर को तृतीया का श्राद्ध होगा। शेष आगे अमावस्या तक तिथियां क्रमशः ही रहेगी। धर्मशास्त्रीय मतानुसार श्राद्ध का समय अपरान्ह काल है इस समय पितृ द्वार पर आते हैं। वायु पुराण के अनुसार इन सोलह दिनों में जो भोज्य पदार्थ आदि दिया जाता है वह अमृत रूप होकर पितरों को प्राप्त होता है। श्राद्ध में श्रद्धा,शुद्धता व पवित्रता जरूरी है। पितृ पक्ष पितरों का आलय है
पितृ पक्ष में पितर पितृलोक से मनुष्य लोक में आशा लेकर आते हैं और यह देखते है कि उनके परिजन उनकी तिथि पर श्राद्ध कर्म करते हैं अथवा नहीं। ऐसा वे अमावस्या तक देखते हैं। जो पितरों की तिथि अथवा अमावस्या पर श्राद्ध कर्म करते हैं वे उन्हें आशीर्वाद प्रदान कर चले जाते है। यह पक्ष पितरों का आलय कहलाता है। यह समय उनका सामूहिक पर्व भी माना जाता है।
17 दिनों के है इस वर्ष सोलह श्राद्ध
आचार्य शर्मा वैदिक ने बताया कि धर्मशास्त्रीय मान्यता के अनुसार यह कर्म मध्यान्ह के बाद अपरान्ह काल में सम्पन्न होता है। 1सितम्बर को पूर्णिमा अपरान्ह व्यापिनी है अतः मंगलवार से पार्वण श्राद्ध शुरू होंगे। भाद्र पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष के सभी श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाते है। अपरान्ह व्यापिनी तिथि ही श्राद्ध कर्म का सही समय है। जो निरन्तर सोलह दिनों तक चलेंगे ।
श्राद्ध पक्ष की तिथियां
2 सितम्बर को प्रतिपदा, 3 को द्वितीया ,5 को को तृतीया। 6 को चतुर्थी, 7 को पंचम ( कुंवारा पंचमी,,,भरणी श्राद्ध ),8 को षष्ठी, 9 को सप्तमी, 10 को अष्टमी, 11 को नवमी( अविधवा नवमी )12 को दशमी,13 को एकादशी,14 द्वादशी( सन्यासियों का श्राद्ध )15 को त्रयोदशी (मघा श्राद्ध ),16को चतुर्दशी (शस्त्रादिहत श्राद्ध) व 17 सितम्बर गुरुवार को सर्वपितृ अमावश्या का श्राद्ध होगा।
जिन्हें अपने परिजनों की मृत्यु तिथि नहीं है उनके निमित्त अथवा ज्ञात अज्ञात पितरों के निमित्त अमावस्या को श्राद्ध व तर्पण कर सकते हैं। पितृ पक्ष पितरों के लिए पर्व का समय है अतः इस पक्ष में श्राद्ध किया जाना चाहिए। इनकी कृपा से ही सुख ,समृद्धि बनी रहती है। इस वर्ष अधिक मास आश्विन होने से मातामह श्राद्ध नाना, नानी का पितृपक्ष के एक माह बाद निज आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 17 अक्टूबर शनिवार को होगा। इस प्रकार इन सत्रह दिनों में सोलह श्राद्ध होंगे।