वाराणसी, वो शहर, जिसे दुनिया का सबसे प्राचीन शहर कहा जाता है। शायद इसलिए वास्तविक रूप से इस शहर की स्थापना कब हुई, इसका जवाब ढूंढने की कई बार कोशिश हुई लेकिन इतिहास के पन्ने भी कम पड़ गए।
पुराण के पन्ने कहते हैं कि खुद विश्वेश्वर महादेव ने करीब पांच हजार साल पहले काशी की स्थापना की थी। लेकिन साल 1956 में आज ही के दिन यानी 24 मई को इस प्राचीन शहर का नाम सरकारी गजट के मुताबिक वाराणसी पड़ा था। यानी आज 65 बरस का हो गया वाराणसी।
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री और बीएचयू के प्रोफेसर राम नारायण दिवेदी के मुताबिक पुराणों के पन्ने पलटने पर कई तथ्य सामने आते हैं। पता चलता है कि मनु से 11वीं पीढ़ी के महाराज काश के नाम पर काशी बसी। महामंडलेश्वर स्वामी आशुतोषानंद गिरी बताते हैं कि काशी का सनातनी परंपरा के हर बिंदु का केंद्र था।
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स्कंद पुराण का जिक्र करते हुए वे बताते हैं कि काशी नाम काश्य शब्द से बना है, जिसका अर्थ है प्रकाश। वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम का केंद्र रहे काशी का धार्मिक अर्थ इससे जुड़ता है। यानी जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त यानी मोक्ष। जो मोक्ष की राह प्रकाशमान करे, दिखाए, वो काशी है।
अब तक 18 नाम
काशी से बनारस, बनारस से वाराणसी, अब तक करीब 18 नाम से काशी, जानी जाती है। इनमें बनारस, बेनारस, अविमुक्त, आनंदवन, रुद्रवास, महाश्मसान, जित्वरी, सुदर्शन, ब्रहमवर्धन, रामनगर, मालिनी, वाराणसी, फोलो-नाइ, पो लो निसेस, पुष्पावती, आनंदकानन, मोहम्मदाबाद प्रमुख हैं।
पूर्व सीएम संपूर्णानंद ने रखा था वाराणसी नाम
वाराणसी के रहने वाले पूर्व मुख्यमंत्री संपूर्णानंद ने बनारस का नाम वाराणसी रखा था। काशी की सभ्यता, संस्कृति पर लिखने वालीं रानिका जायसवाल कहते हैं कि हम जैसे आम बनारसियों का वाराणसी नाम रखने के पीछे की दो वजह पता हैं। पहला कि ये नाम वाराणसी के दोनो छोरों पर बहने वाली वरुणा और अस्सी नदी से जोड़कर रखा गया है।
दूसरा कि सनातनी परंपराओं के मुख्य केंद्र होने के नाते और धर्म की राजधानी होने का फील वाराणसी शब्द में मिलता है। कई नामों के सफर भले ही इस सबसे पुरानी नगर ने किया हो लेकिन विश्व में एक बार नई काशी नई वाराणसी की पहचान यहां के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नगरी को दिया है।