लाइफ़स्टाइल डेस्क। जन्माष्टमी का त्योहार भादप्रद महीने की अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाता है, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। भगवान श्री कृष्ण का जन्म का भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को हुआ था। कृष्ण जी ने रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया था। इसीलिए अगर अष्टमी तिथि के दिन रोहिणी नक्षत्र होता है, तो यह एक बहुत ही शुभ और विशेष संयोग माना जाता है। इस बार जन्माष्टमी का पर्व 12 अगस्त बुधवार के दिन मनाया जाएगा। इस बार जन्माष्टमी के दिन अष्टमी की तिथि और कृतिका नक्षत्र है। जानिए क्या है जन्माष्टमी व्रत का महत्व और पूजा करने का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि..
शुभ मुहूर्त
ज्योतिषीय गणना के अनुसार जन्माष्टमी के दिन कृतिका नक्षत्र रहेगा। चंद्रमा इस दिन मेष राशि में तो वहीं सूर्य कर्क राशि में रहेगा। इस दिन वृद्धि योग भी बन रहा है।
पूजा का समय: 12:05 AM से लेकर 12:47 AM,तक रहेगा। यानि कुल मिलाकर पूजा की अवधि 43 मिनट तक रहेगी।
जन्माष्टमी पूजा विधि
एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं उसके बाद भगवान् कृष्ण के बालस्वरुप को किसी स्वच्छ पात्र में रखे। फिर उन्हें पंचामृत से स्नान करवाएं। उसके बाद गंगाजल से स्नान कराएं। उन्हें सुंदर वस्त्र पहना कर उनका शृंगार करें। तत्पश्चात् कृष्ण जी को झूला झुलाएं और धूप-दीप आदि दिखाएं। रोली और अक्षत से तिलक करें। माखन मिश्री का भोग लगाते हुए प्रार्थना करें। हे ! कृष्ण मुरारी भोग और पूजा ग्रहण कीजिए। कृष्ण जी को तुलसी का पत्ता भी अर्पित करना चाहिए। भोग के बाद गंगाजल भी अर्पित करें।
जन्माष्टमी का महत्व
जन्माष्टमी का त्योहार भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन कई जगहों पर दही हांडी उत्सव भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण के बालरूप की पूजा की जाती है। जो दंपत्ति नि:संतान हैं। उन्हें इस दिन व्रत रखकर सच्चे मन से श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से लड्डू गोपाल उनकी मनोकामना पूरी करते हैं। संतान से संबंधी सभी समस्याएं दूर होती हैं और संतान दीर्घायु होती है। नि:संतान दंपत्तियो को जन्माष्टमी पर रात को कृष्ण जन्म के समय बांसुरी अर्पित करनी चाहिए। मान्यता है कि जन्माष्टमी का व्रत करने से आपके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।