सियाराम पांडे ‘शांत’
नीति कहती है कि जैसी करनी, वैसा फल। आज नहीं तो निश्चय कल। अपराधी चाहे जहां कहीं भी भाग जाए लेकिन उसके दुष्कृत्य हमेशा उसकापीछा करते रहते हैं। फूलों की सुगंध तक हवा की दिशा पर निर्भर करती है लेकिन व्यक्तित्व की सुगंध और दुर्गंध तो दसों दिशाओं में फैलती है। अब यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अच्छे काम कर प्रसिद्ध होना चाहता है या बुरे काम कर कुख्यात होना चाहता है।
उसे इतना तो सोचना ही होगा कि आत्मा से बड़ा न्यायाधीश दूसरा कोई भी नहीं है। पुलिस और कचहरी से तो एकबारगी आदमी बरी भी हो सकता है लेकिन आत्मा व्यक्ति को कभी चैन से बैठने नहीं देती। हजारों करोड़ के पीएनबी बैंक लोन घोटाले नीरव मोदी के साथ भी कुछ ऐसा ही है। भारत के कानून से बचने के लिए वह विदेश भाग तो गया लेकिन वहां की अदालत से भी उसे न्याय नहीं मिल सका।
सरकारी बैंकों से जालसाजी करके, कर्मचारियों को घूस, प्रलोभन आदि देकर मोटी रकम बतौर कर्ज लेना और फिर पैसा विदेश पार कर भाग जाना, यह एक तरह से बैंक धोखाधड़ी करने वालों की रीति-नीति बन गयी थी, लेकिन बीते तीन-चार साल में जिस तरह सरकार ने विदेशी अदालतों के समक्ष में अकाट्य सबूतों, तथ्यों व तर्कों के सहारे भगोड़े आर्थिक अपराधियों पर कार्रवाई की है, उससे अब विदेश भागना किसी भी सूरत में सुरक्षित नहीं रह गया है। वैसे किसी भी व्यक्ति का एक तो भागना आसान नहीं है और दूसरे अगर भगाने में सफल भी हो जाता है, तो उसे विदेश में भी गिरफ्तार कराया जा सकता है प्रत्यर्पण के जरिए देश में लाया जा सकता है।
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हाल के वर्षों में कई अपराधियों एवं जालसाजों को लाया गया है। क्रिश्चियन मिशेल, विजय माल्या, चावला, मेहुल चोकसी, नीरव मोदी, संदेसरा बंधु जैसे बड़े आर्थिक अपराधियों के साथ ही कई आतंकवादियों पर भी विदेशों में बड़ी कार्रवाई करने या फिर पकड़ने में सफलता मिली है। इससे सरकारी एजेंसियों के इरादे बहुत बुलंद हैं। एक वक्त था जब विदेश में भाग जाने का मतलब पूरी तरह से सुरक्षित हो जाना था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। नीरव मोदी और मेहुल चोकसी, दोनों मामा-भांजे हैं और इन दोनों ने मिलकर देश के दूसरे सबसे बड़े सरकारी बैंक पीएनबी को बड़ा चूना लगाया।
इन्होंने फर्जी दस्तावेजों के जरिए ऋण और स्विफ्ट पेपर लिया और फिर गबन करके विदेश भाग गये। मेहुल चोकसी, नीरव मोदी और विजय माल्या का भागना बीते चुनावों में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना और इनको लेकर भाजपा को बहुत असहज स्थिति का सामना भी करना पड़ा, लेकिन सरकार ने इन भगोड़ों के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए जहां-जहां ये भगोड़े गये, वहां-वहां सरकारी एजेसियां पहुंची और अकाट्य सबूतों एवं तथ्यों के जरिए वहां की सरकार और अदालतों को यह समझाने में सफल रहीं कि ये भगोड़े बड़े आर्थिक अपराधी हैं और इसलिए इनका प्रत्यर्पण करना चाहिए।
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अब तक कई घोटालेबाजों, आतंकियों व जालसाजों का प्रत्यर्पण हो चुका है और कई लाइन में हैं। मसलन विजय माल्या सरकारी बैंकों का करीब आठ-नौ हजार करोड़ रुपये हड़प कर विदेश भाग गये लेकिन सरकार ने ठोस कार्रवाई करते हुए गिरफ्तार कराया और प्रत्यर्पण के लिए अदालत को संतुष्ट करने में भी सफल रही। विजय माल्या के प्रत्यर्पण का आदेश यूके के लोवर कोर्ट, हाई कोर्ट और गृह सचिव से हो चुका है लेकिन अभी सुप्रीम कोर्ट के साथ ही एक अन्य पायदान बचा है जहां वह पैरवी करके कुछ मोहलत पा सकता है और इसी का फायदा उठा रहा है। इसी तरह नीरव मोदी के प्रत्यर्पण का आदेश यूके के लोवर कोर्ट से हुआ है, लेकिन अभी दो-तीन साल तक वह कानून की आंख में धूल झोंकता रहेगा, क्योंकि ब्रिटिश व्यवस्था में निचली अदालत के बाद, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, गृह सचिव और एक अन्य पायदान ऐसा है जहां वह प्रत्यर्पण का विरोध कर सकता है। लेकिन जिस मुस्तैदी के साथ एजेंसियां कार्रवाई कर रही हैं उससे देर सबेर सभी भगोड़ों को भारत आना होगा और मुदकमे का सामना करना पड़ेगा।
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अब उनको क्या सजा मिलेगी, क्या नहीं मिलेगी, यह तय करना अदालत का काम है। नीरव मोदी ने विजय माल्या की ही तरह झूठा फं साने, राजनीतिक मुद्दा बनने, न्याय न मिलने, जेलों की स्थिति खराब होने और इस सब से मानसिक स्वास्थ्य खराब होने जैसे तमाम तर्क-कुतर्क किये लेकिन ब्रिटिश न्याय व्यवस्था की आंख में धूल नहीं झोंक सका। देर-सबेर अन्य अदालतों का फैसला आयेगा और एक न एक दिन इन भगोड़ों को आकर अदालत का सामना करना पड़ेगा। कुल मिलाकर अगर अपराध किया है तो उसकी सजा मिलकर ही रहेगी। भारत में मुंबई की आर्थर जेल में नीरव मोदी को रखने की तैयारी हो रही है। यह आने के बाद वह क्या बयान देगा, इस पर कुछ राजनीतिक दलों का भविष्य भी टिका है। जाहिर है शक की सुई उनकी ओर भी घूमेगी। उनकी मिलीभगत की पोल खुलेगी, इससे बुरा उनके लिए भला और क्या हो सकता है?