इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दुराचार के आरोपी के खिलाफ चार्जशीट व सीजेएम शाहजहांपुर द्वारा जारी सम्मन को रद्द करने से इंकार कर दिया है और याचिका खारिज कर दी है।
कोर्ट ने कहा कि आरोपी का पीड़िता के माथे पर सिंदूर लगाना उसे पत्नी के रुप में स्वीकार कर शादी का वायदा करना है। कोर्ट ने कहा कि सिंदूर दान व सप्तपदी हिंदू धर्म परंपरा में विवाह के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। सीमा सड़क संगठन में कनिष्ठ अभियंता याची को पारिवारिक परंपरा की जानकारी होनी चाहिए। जिसके अनुसार वह पीड़िता से शादी नहीं कर सकता था। फिर भी उसने शारीरिक संबंध बनाए। याची ने दुराशय से संबंध बनाए या नहीं, यह केस के विचारण में तय होगा। इसलिए चार्जशीट रद्द नहीं की जा सकती।
यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने विपिन कुमार उर्फ विक्की की याचिका पर दिया है।
याची का कहना था कि सहमति से सेक्स करने पर आपराधिक केस नहीं बनता। पीड़िता प्रेम में पागल हो कर खुद हरदोई से लखनऊ होटल में आई और संबंध बनाए। प्रथम दृष्टया शादी का प्रस्ताव था। दुराचार नहीं माना जा सकता। किन्तु सिंदूर लगाने को कोर्ट ने शादी का वायदे के रुप में देखते हुए राहत देने से इंकार कर दिया।
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गौरतलब है कि दोनों ने फेसबुक पर दोस्ती बढायी। शादी के लिए राजी हुए। पीड़िता होटल में आई और संबंध बनाए। बार बार फोन काल, मैसेज से साफ है कि पीड़िता ने प्रेम संबंध बनाए थे।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय हिन्दू परंपरा में मांग भराई व सप्तपदी महत्वपूर्ण होती है। शिकायत कर्ता की भाभी अभियुक्त के परिवार की है। शादी का वायदा कर संबंध बनाए। यह पता होना चाहिए था कि परंपरा में शादी नहीं कर सकते थे। सिंदूर लगाने का तात्पर्य है की पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया है। ऐसे में चार्जशीट रद्द नहीं की जा सकती।